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શ્રી જેન સત્ય પ્રકાશ
[वर्ष : २० बिखरी पडी है जिसके बिना संशोधनके उसका क्रमिक इतिहास ही अपूर्ण रहेगा-विशेषतः परमार कलाका शिल्प-भास्कर्य जैन अवशेषोंमें ही मिलेगा। मौर्यकालीन पालीश यहांकी विशेषता है जिसे महाराजा भोजने प्रारंभ किया था। अनुभवहीन कलाकार कभी कभी भ्रमित हो जाते हैं कि ये प्रतिमाएं मौर्ययुगकी तो नही हैं। भोपाल राज्यमें अमरावद, समसगढ़, इस्लामपुर, भोपालनगर और आशापुरी जैन प्रतिमाओंके गाने हुए केन्द्र हैं। हजारों जैन कलाकृतियां सूचित स्थानोंमें बिखरी पड़ी हैं। भोपाल के मुख्य मस्जिदकी सीढियोंमें एवं अंदर भागमें जैन प्रतिमाएं व अवशेषोंके चिह्न लगे हुए हैं। आर्य सुहस्तिसूरिका यह विहार प्रदेश रहा है । मानतुंगाचार्यका साधनास्थान तो आज भी भोपालके पास ही है।
__ महाराजा भोजकी परमसहिष्णुता विख्यात है। प्रस्तुत भोजपुरका शैव मंदिर व ऐतिहासिक बांध भोजकी सांस्कृतिक और लोकसेवाकी एसी कृतियां हैं जिन पर समूचा राष्ट्र गर्व कर सकता है। जिस समय मंदिरका निर्माण हो रहा होगा उस समय वहां जैनोंको संख्या पर्याप्त रही जान पडती है। सूचित भोजपुरके शैव मंदिरसे एक फलोग दूर घनघोर अरण्यमें विशाल जैन मंदिरके अवशेष पड़े हैं और नंदिरका जीर्णोद्धाररूप भी दृष्टिगोचर होता है। कहना चाहिए यह मंदिर एक बहुत ही गहरी खोहके किनारे बनाया गया है। यही नवाब साहबको शिकारगाह है।
जब हम लोग जैन मंदिरकी ओर आगे बढ रहे थे ऐसा लग रहा था कि कहींसे वनराज अयाचित रूपसे दर्शन न दे बैठे। क्यों कि जानेका मार्ग तो है ही नहीं । अनुमानसे ही हम लोग बढे जा रहे थे। मंदिरके समीप पहुंचने पर अधतूटी जिनप्रतिमाएं दिखलाई पडी । स्वस्तिक, नंद्यावर्त और अन्य जनसंस्कृति मान्य प्रतीक भी दिखलाई पडे। आगे बढने पर लता-गुल्मोंसे परिवेष्टित भव्य भवन दृष्टिगोचर हुआ। यही आलोचित जैन मंदिर है। पुरातन अवशेषोंको एकत्र कर किसी श्रद्धाजीवीने ढांचा खडा कर दिया है। कलाको हत्या तो इस प्रकार हुई है कि देखते ही दिल रो पडता है । कलापूर्ण प्रतिमा और महत्त्वपूर्ण अवशेषोंको उटपटांग ढंगसे फिट कर दिये हैं। जामितीय रेखावाले स्तंभ उल्टे ही जड़ कर श्रद्धालु मानसने अपनेको कृत-कृत्य माना है। चतुर्दिग् स्थानको सावधानीपूर्वक देखनेसे अवगत होता है कि पहिले यहां पर ही मंदिर था, पर जैन समाजका संसर्ग न रहनेसे और मुस्लिम शासकोंकी आखेटचर्याका प्रधान स्थान होनेसे, या समुचित रक्षाके अभावमें धराशायी हो गया। १९५२ संवतमें किसी श्रद्धालुने जीर्णोद्धत कर पुण्यार्जन किया। कायोत्सर्ग प्रतिमा___ मंदिरमें विशाल काय त्रिगडा अवस्थित है। मध्यवर्ती प्रतिमा २० फीटसे अधिक ऊंची है। इससे कुछ कम ऊंची २२ अन्य प्रतिमाएं हैं । कलाकी दृष्टिसे मूर्तियां विशेष महत्त्वपूर्ण तो नहीं हैं पर हां, परमार मूर्ति-निर्माण कलाके बहुतसे उपकारणोंका व्यवहार
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