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१९४] श्री. न सत्य प्राश
[वर्ष : १८ बिकानेरके लोकागच्छीय मोहनलालजी यतिके पास मैंने एक लोकागच्छकी संस्कृत गद्यमें रघुनाथ यतिद्वारा रचित पट्टावली देख । थी। उसमें भी लोकागच्छकी संस्कृत पद्यमय पट्टावलीका निर्देश मिलता है। ऐसे ही कडुआ पट्टावलीमें कल्याण कृत " युगप्रधान पट्टावली"की संस्कृत टीकाका उल्लेख है । खेद है कि जितनी सामग्री उपलब्ध हुई है वह भी प्रकाशित नहीं हुई अतः वे जिनके पास है वे प्रकाशित कर दें ताकि अन्य विद्वानों मी उससे लाभ उठा सके । अद्यावधि पट्टावलीसंग्रहके प्रकाशित केवल दो ही ग्रंथ हमारे सामने हैं। श्रीजिनविजयजी सम्पादित एवं नाहटाजी प्रकाशित " खरतरगच्छ पट्टावली संग्रह ' और दर्शनविजयजी सम्पादित पट्टावली समुच्चय भाग १-२ ।
श्रीदर्शनविजयजीके एक पत्रसे ज्ञात हुआ था कि उनके पास आगमिक एवं तपागच्छकी कई शाखाओं आदिकी पट्टावलियों अभी और अप्रकाशित हैं । हमारे संग्रहमें भी उपरोक्त पाडिवालगच्छ पट्टावली, लोंका, टिप्पण, राजगच्छकी पट्टावली, धर्मघोषगच्छकी संक्षिप्त आचार्यपरंपरा नामावली, बृहद्गच्छ गुर्वावली, खरतरगच्छकी बेगड़ आदि शाखाओंकी पट्टावलिये एवं तपागच्छकी एक विशिष्ट प्राचीन भाषा पैट्टावली आदि संग्रहित है। कलकत्तेकी नित्यमणिविनय लायब्रेरी और श्रीजिनविजयजीके पास तपागच्छका गुर्वावलीविशुद्धि नामक ग्रंथ भी देखनेमें आया है। इसी प्रकार आगरेके श्रीविजयधर्मसूरि ज्ञानमंदिर आदि में कई सपागच्छकी शाखादिकी पट्टावलियों हैं उन सबका शीघ्र ही एक संग्रहग्रंथ प्रकाशित होना परम आवश्यक है । ताकि प्रत्येक इतिहासप्रेमी उनसे लाभ उठा सकें । मुनि जिनविजयजी " विविध गच्छीय-पट्टावली संग्रह " प्रकाशित कर रहे हैं । जिसके कुछ फर्मे मैंने कुछ वर्षों पूर्व मंगवाये थे पर वह ग्रंथ अभी पूरा छपा नहीं, पता नहीं वह कब तक प्रकाशित होगा।
श्रीयुत मोहनलाल दलीचन्द देशाईके पास एक कडआ मतकी ऐतिहासिक एवं विस्तृत भाषा पट्टावली' कुछ वर्ष पूर्व मेरे बंबई प्रवासके समय देखने में आई और उनकी नकल करनेके लिए मंगाने पर देसाई स्वयं जब कार्तिक शुक्ला ५ को हमारे यहाँ बीकानेर पधारे थे तब साथमें लाये थे। उसके अवलोकन पर कई कई बातें जाननेको मिली। उसमें कडुआमतके साहित्यनिर्देश विशेष रूपमें उल्लेखनीय होनेसे इस लेखमें उक्त पट्टावलीमें जिन जिन कडुआमती विद्वानोंके रचित ग्रंथादिकोंका उल्लेख मिलता है उनकी सूची यहाँ दी जा
प्रकाशित-भारतीय विद्या वर्ष १ अंक २ पल्लीवाल गच्छपट्टावली, प्र. आत्माराम शताब्दी स्मारक ग्रन्थ ।
२ आफ्ने अपने 'जैन गूर्जर कविओ' भाग २-३ के अंतमें प्राप्त पट्टावलियोंका अति संक्षिप्त सार दिया है जिसमें कहुआमत पट्टावली भी सम्मलित है। एक संक्षिप्त पट्टावली इस मतकी जैन साहित्य संशोधकमें भी छपी थी।
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