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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१४ શ્રી. જૈન સત્ય પ્રકાશ [वर्ष : १७ कांपइ कांपइ वहरि मम, अवह वहावइ वाट ॥१०॥ अनुदिण पयाणडे संघ सहु, सेज सिहरि चड़ेवि । तिहुयण लोयण चंदलउ, रिसह जिणंद नमेवि ॥ कुंयरड़ो पातलो ताय सउ, पणमह तहि युगबाहु । युगवरो सूरि जिणकुसल गुरो, देसण रस जलबाहु ॥ ११ ॥ ॥ वस्तु ॥ अवर वासरि अवर वासरि, संघवइ एउ । सिरि ढिल्लिय वर पुरह सुविहि संधु रयवइ करावइ । तहि सिंघिहिं संघवह सपरिवार कल्हण चलावइ । कमि कमि सेतुंजसिरि चड़वि, पणमिय रिसह जिणंदु ॥ भेटह पातल कुयरू तहिं, सिरि जिणकुसल मुणिंदु ॥ १२ ॥ ताण देसण रसामिय पमोइयमगो, वयर मुणि रयण जिम लहुयकम्मो । निय जणणि पासि, गंतूण पभणेइ, अवर वयणं वसो भोलिमाए ॥ १३ ।। माइ वय गहणु हउं, एम निय नंदणे, अद्ध भणि एवि जंपेइ माया । मरउं तुह मुहकमल, वत्स उत्संगि, बइसि बलि कीसु तुह लोयणाणं ॥ १४ ॥ नयण सणड़ा, भोलिमावास, भोलड़उ वयणु इहु किमु कहेसि । महुमणि तुह जिम वड्ढए आस, होसि तउं अम्ह कुल रयणु दीवो ॥१५ ।। नियजणणि वयणु रूयड़ा निसुणि वत्स, देसु विविहाई हउं तुह फलाई। गुंदवड़ा अनुदाख विदाम, देसु लाडण विविह सूखड़ाई ॥ १६ ॥ सील सोहाग लावण्ण गुणमालिया, चंदमुही मृगलोयणीय। भंभर भोलडिय रूवधर बालिया, परणाविसु तुह रंग भरे ॥ १७ ॥ चंदकिरणेहि किउ अहव कपूरि किउ, अहव अमियेण किउ जणणिमणु । तासु किरि जेण सा भोलवइ बहु परे, विविहवयणेहि अइकोमलेहिं ॥ १८ ॥ तह वि जिणकुसलसरि वयणु निसुणेवि, एहु किरि अम्हगण गयणुभाणु । दियइ खमासमणु पियर तसु जाम, वासखेवो करइ सुगुरू ताम ॥ १९ ॥ ॥ वस्तु ॥ ताण देसण, ताण देसण, कुयरु निसुणेवि । नियजणणि विनवए माइ माइ हुं वरिसु वयसिरि ।। सउ माड़िय भोलवए तासु जइवि वयणेहि बहुपरि । For Private And Personal Use Only
SR No.521692
Book TitleJain_Satyaprakash 1952 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1952
Total Pages28
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size12 MB
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