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શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ
[वर्ष १७ आपकरमके उपर नृपने कुष्टि वरकुं परणाइ । मयणा चिंते काई न भाई कर्म लिखि सो वणि आई ॥ ९॥ इक दिन जिनवंदिन गुरुवंदिन आइथी जिनमंदिरपे । वंदिनपूजन करके एकचित ध्यान घरें मनकंदर ॥ १०॥
(अथ ध्यानस्तुति । छन्द-मोतिदामः ). तुहि अरिहंत तुहि भगवंत तुहि जिनराज तुंहि जग संत । तुहि जगनाथ तुहि प्रतिपाल तुंहि मनमोहन गाजिदयाल ॥१॥ तुहि भवभंजन भावसरुय तुंहि अरिंगजन रंजनभूप । तुंहि अविनाश तुहि महाराज तुहि वीतराग तुंहि वडभाग ॥ २ ॥ तुहि गुणधाम तुंहि विसराम तुंहि नवनिध तुहि वडनाम । तुहि अघनास तुहि अविनाश तुहि हिलवंत तुहि मत्विास ॥ ३ ॥ तुहि गुणकेवलरूप अनंत तुहि जगतारन तारन संत । तुहि जगधेय तुंहि जगध्यान तुहि चिद्रूप तुहि जगमान ॥ ४ ॥ तुंह मम मात तुंह मम तात तुहि मम भ्रात तुहि मम छात । तुंह सुखसंपत राखणहार तुहि दुखदोहग टालनहार ॥ ५ ॥
(लावणि) करु अरज एक तोपे जिनपति कंत कुष्टसे नहिं डरते। पूर्व करमके लिखत लेख जे किसके टारे नहिं टरतें ॥६॥ पिण तुज शासन जगतहेलना जगत ढंडेरो वाजत है। आपकर्म अरु जैनधर्मके फल पाए सो लाजत है ॥ ७ ॥ ओ दुख मोये सह्यो न जाय है आदिनाथ जग रखवाला ।' करुणाकरके रोग निवारो गुण कोजे जगप्रतिपाला ॥ ८ ॥ आप प्रसन्न होय फल बिजोरो हाथतणो फल तब दीनो। मयणा तब उल्लास भई मनचिंत्यो कारज सब सिनो ॥९॥ नव दिन नमणनिर तनु फरसे कुष्टरोग सब नासत है। कामदेव प्रमु अमर समोवड नृप श्रीपाल सुहावत है ॥ १० ॥ या किरत हे प्रभू तिहार भूतल प्रगट प्रगलहे जस तेरो। आसोज चैत्र मासमें महिमा देसदेसमें प्रभू तेरो ॥११॥ फिर वागडदेस वडोद नगरमें जगपर प्रभू करुणा किनी । कीतने बरस छों पूजनमहिमा अविचल भूतल ऋध दीनि ॥१३॥
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