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३२.
શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ
[ वर्ष १३
यवनराज के पास पहुंचे, उनकी आकृति - ललाट देख कर उसका हृदय पलट गया और तत्काल सबको मुक्त कर लौटा दिया। एक बार गुजरात में मुगलोंका भय उत्पन्न होने पर सारा नगर सूना हो गया, पर सूरिजी खंभातमें स्थिर रहे । कुछ दिनों में भय दूर हुआ और सब लोग लौट आए । सूरिजी वाहडमेर विराजते थे, लघु पौशालके द्वार पर सात हाथ लम्बा सांप आकर फुंकार करने लगा, जिससे साध्वियां डरने लगी । उन्होंने सूरिजीको सूचना दी । सांप तत्काल स्तंभित हो गया। एक बार सूरिजीने सं. १४६४ में साचोर चौमासा किया । अश्वपति (बादशाह ) विस्तृत सेना सहित चढाई करने के लिए आ रहा था, सब लोग दसों दिशि भागने लगे, ठाकुर भी भयभित था । सुरिजीके ध्यानबलसे यवनसेना साचौर त्याग कर अन्यत्र चली गई । इस प्रकार सूरिजी के अनेकों अवदात है ।
सूरिजीने साहित्यनिर्माण भी खूब किया, इस रासमें निम्नोक्त ग्रन्थरचनाका उल्लेख है:
१ व्याकरण, २ पदर्शननिर्णय, ३ शतपदीसार, ४ रायनामांकचरित्र, ५ कामदेवकथा, ६ धातुपारायण, ७ लक्षणशास्त्र, ८ मेघदूत महाकाव्य, ९ राजिमती - नेमि सम्बन्ध, १० सूरिमन्त्रोद्धार, ११ अंगविद्या उद्धार, १२ सत्तरी भाष्यवृत्ति इत्यादि.
सूरिजीने सत्यपुर नरेश राउ पाता, नरेश्वर मदनपाल को प्रतिबोध दिया । उडर मलिक भ ( ? ) के पुत्र सूरदास को प्रतिबोध दे कर घोलका कलिकुण्ड पार्श्वनाथ की पूजा करवाई । जम्बू (जम्मू) नरेश राउ गजमल गढ़मा, जीवनशय प्रभृति श्रीमेरुतुंगमरिके चरण वन्दनार्थ आये । सूरिजी अपार गुणों के समुद्र हैं, नये नये नगरों का संघ वन्दनार्थ आता है । साह सलखा सादागर कारित उत्सव से श्री महीतिलकसुर एवं महिमश्री महत्तरा का पदस्थापन जम्मू साह वरसिंघ कारित उत्सवसे हुआ । खीमराज संघपतिद्वारा खंभात में उत्सव होने पर मेरुनंदन रिकी पदस्थापना हुई । माणिक्यशेखरको उपाध्याय पद, गुणसमुद्रसूरि माणिकसुन्दरसूरिको साहतेजा कारित उत्सवसे खंभनयर में और वहीं जयकीर्तिसुर को संघवी राजसिंहकृत उत्सवसे आचार्य पद स्थापित किया। इस प्रकार ६ आचार्य, ४ उपाध्याय तथा १ महत्तरा, वाणारिस, पन्यास, पवत्तिणि प्रभृति संख्याबद्ध पदस्थापित व दीक्षित किये ।
सूरिजीने पट्टण, खंभात, भरौंच, सोपारक, कुंकण, कच्छ, पारकर, साचोर, मरु, गुज्जर, झालावाड, महाराष्ट्र, पंचाल, लाटदेश, जालोर, घोघा, ऊना, दीव, मंगलपुर, नवा प्रभृति स्थानों में विचरकर बडी शासनोन्नति की । अन्तमें पाटण पत्रारे, आयु शेष ज्ञात कर अनशन आराधनापूर्वक सं. १४७१ मार्गशीर्ष पूर्णिमा सोमवारके पिछले प्रहर उत्तराध्ययन श्रवण करते हुए अत सिद्धोंके ध्यान से श्रीमेरुतुंगसूरिजी स्वर्ग सिधारे ।
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