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શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ
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२४२ ] के जैबी उदेपुर राज्य तेने खूब गुप्त राखवा मागे छे. उदेपुर राज्ये अखत्यार करेल आ पगलानो कोई रीते बचाव थई शके एम नथी, अने एना माटे जेटलो अफसोस करीए एटको ओछो छे,
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पण जैन समाज माटे आ घडी कंईक सक्रिय-रचनात्मक अने निर्णयात्मक पगलु भवानी भावी पडी छे, एटले जे कई बनी गयुं छे तेनो केवळ अफसोस कर्या करवो, अथवा उदेपुर राज्य सामे कडवा शब्दोमां मात्र आपणो अणगमो जाहेर कर्या करवो ए पूरतुं के लाभप्रद नथी. एटले आपणां लागणीतंत्रोने वधु झणझणाटमा उतरवा न देतां, आवी पडेला अनिष्ट दूर कर बानो उपाय शोधवामां ज आपण बुद्धि अने शक्तिओने लगाववी जोईए; आपणे जाग्रत भई प्रयत्नशील बनीए तो जरूर कंईक सारै परिणाम आवशे एवी आशा सेववी अस्थाने नथी.
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स्यारे सवाल ए थाय छे के आवो प्रयत्न शी रीते करवो ? आ माटे अमने आ प्रमाणे बे मार्ग सूझे छे
(१) बंधारणीय मार्ग अखत्यार करोने उदेपुर राज्ये करेल नियममां समुचित फेरफार कराववो; अथवा
(२) व्यवस्थित आंदोलन ऊभु करीने जैन संघनी सुषुप्त शक्तिने जाग्रत करीने उदेपुर राज्य उपर दबाण लाववुं.
आमनो पहेलो - बंधारणीय-मार्ग ग्रहण करवो होय तो मेवाडनु नवुं राज्यबंधारण जोतां, ए बंधारणनो ज उपयोग करीने, केसरियाजी तीर्थने लगता कायदामां फेरफार करावी शकाय एवी जोगवाई ए नवा राज्यबंधारणमां नीचे मुजब बे स्थळे जोवामां आवे छे
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(१) बंधारणना बीजा भागना चोथा धारानी कलम ६ नी पेटा कलम बीजी, जे आ प्रमाणे छे:
6. (2) The Vishvavidyalaya Bill, when ready, will be placed before the authority exercising legislative power of Mewar and with such changes as it thinks fit be passed as law.
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[अर्थात् विश्वविद्यालय खरडो ज्यारे तैयार थशे व्यारे ते मेवाडना धारा संबंधी अधिकार भोगवता अधिकारी पासे रजू करवामां आवशे अने एमां योग्य फेरफारो कर्या पछी तेने कायदानुं रूप आपवामां आवशे. ]
आ कलमनो आश्रय लईने, विश्वविद्यालयनो धारो घडवामां आवे ते अवसरे, लागता -