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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जैसलमेरके जैन ज्ञानमंडारोंके अन्यत्र अप्राप्य ग्रन्थोंकी सूची संग्राहक - श्रीयुत अगरचंदजी नाहटा .. राजपूताने में प्राचीन जैन ज्ञानभंडारोंके लिये जैसलमेर बहुत प्रसिद्धिप्राप्त स्थान है। ताडपत्रीय प्राचीन हस्तलिखित प्रतियोंके लिये तो पाटणके बाद यहींका नम्बर आता है । यहाक जैन मंदिर भी बड़े कलापूर्ण हैं, पर खेद है कि वे इतनी प्रसिद्धि न पा सके । कई वर्षोंसे हमारा विचार इस तीर्थभूमिकी यात्राका था, जो श्रावण सं. १९९९ में सफल हुआ। हमने वहाँ जाकर वहाके समस्त जैन भंडारोंका अवलोकन किया एवं अप्रकाशित शिलालेखादिकोंकी नकलें की । इस यात्रामें हमारे २५ दिन बड़े आनंदमें व्यतीत हुए । हमारे परिश्रमका लाभ सभी साहित्यिक विद्वान शीघ्र ही उठा सकें अतएव हमने ३-४ लेखोंद्वारा आवश्यक ज्ञातव्य प्रकाशित करनेका निश्चय कर पहला लेख जैसलमेरके नवीन प्राप्त ताड़पत्रीय प्रतियांके सम्बन्धमें लिखा है, जो 'अनेकान्त के अगले अंकोंमें प्रकट होगा । दूसरा लेख ताडपत्रीयके अतिरिक्त कागज पर लिखी हुई प्रतियोंमें से अप्रसिद्ध ग्रन्थोंके परिचय स्वरूप यह लिखा जा रहा है। तीसरे लेखमें अप्रकाशित जैन प्रतिमालेखोंको प्रकाशित किया जायगा, जो यथासमय प्रगट होगा। • इस लेख में मैं उन्हीं अलभ्य ग्रन्थोंकी सूची दे रहा हूँ जिनका उल्लेख स्व. श्रीयुत मोहनलाल दलीचंद देशाई सम्पादित जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास एवं 'जैन गुर्जर कविओ भा. १-२-३ में नहीं आया है। इनमेंसे कई ग्रन्थोंकी प्रतिये बीकानेरादिमें भी उपलब्ध हैं पर जैन साहित्यके कोषरूप उक्त ग्रन्थोंकी • पूर्तिरूपमें ही उनमें अनिर्दिष्ट समस्त ग्रन्थोंकी सूची दे रहा है। जैसलमेरके चार (नं. १-२-६-७) भंडार तो पूर्व प्रसिद्ध हैं, उनके अतिरिक्त तीन भंडार हमने नये ही देखे अर्थात् उनके ग्रन्थोंके सम्बन्धमें अभीतक किसी व्यक्तिने कोई प्रकाश डाला नजर नहीं आया । इस सूचीमें उन सातों भंडारोंको संज्ञा इस प्रकार दो गई है। बड़ा = बड़ा भंडार जो कि किल्ले पर सुरक्षित है। इसी भंडारके अंतर्गत कई बंडल पेढ़ीमें पदे थे उनकी संज्ञा 'पे' शब्दसे दी गई है। ये दोनों संघके निरीक्षणमें हैं। २ ई = इंगरसीजीका भंडार जो अभी यतिवर बैलजोके हस्तक है। ३. वृ = यतिवर्य वृद्धिचंद्रजीका भंडार जो खरतरगच्छके बड़े उपाश्रयमें है। ४ पं. = पंचायतीका भंडार-भी बड़े उपाश्रयमें है एवं खरतर संघके हस्तक है। आ. = आचार्यशाखा (खरतरगच्छ ) के उपाश्रयमें है। यह उस शाखाके श्रावकोंके आधीन है। इस उपाश्रयमें यति चुन्नीलालजीका भी थोडा संग्रह है जिनकी संज्ञा " चुन्नो" है। तपा = तपागच्छके उपाश्रयमें उस गच्छके श्रावोंके आधीन है। " था = थाहरू शाहका भंडार उनके उपाश्रयमें है और उनके वंशज जुहारमलजीके हस्तक है। इनमेंसे नं. १ और ४की सूची यति लक्ष्मीचंद्रजीने की है पर नं. १की त्रुटित प्रतियाका विवरण उसमें नहीं है, वह आवश्यक है। नं. ५को छोड़ अवशेष भंडारोंकी सूची नाम मात्रकी पुराने ढंगकी है। नं.६ के भंडारकी सूची For Private And Personal Use Only
SR No.521618
Book TitleJain_Satyaprakash 1946 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1946
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size19 MB
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