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શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ
जिहि पातालगंगा खलहल खलहल वहइ रे, लोक करइ तिहां न्हाण |
वाणी रे वाणी कोइल करइ टहूकडाजी ।
इक इक थकी ऊकालो चढतां दोहिली रे जिहां विनायक वात । तिकगि रे तिहणि नगरकोट देख्या दूकडा रे
गढ कांगडा नगर पेख्यां हरख्यां सहु रे वोर लंकडिया तीरि । आव्या रे आव्या बाणगंगा पगि वटि तरी रे ॥
पहिरी धोवति उज्जल सब संघ मिली करी रे, फलनालेर चढाइ । भेटचा रे भेट्या आदीसर चक्केसरी रे
बइठा पदमासन भगवंत सुहामना रे, नयणे देख्या स्वामि । वलिवल रे चलवलि दीजइ दान उवारणाइ रे ।
संतीसरि महावीर भुवणि पूजा करी रे भावन भावइ संघ । जइचंद रे जइचंद राजमहल कइ बारणइ रे
तूं जगनायक तूं जगबंधव तूं धणी जी करि सेवकनी सार । सिवसुख रे सिवसुख दीजइ सामी सासता रे |
पूजा गीत भगति करि देव जुहारिया रे फल्या मनोरथ काम । सब मनि रे सब मनि पूगी मन महि आसता रे
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॥ कलश ॥
इणिपes आदि जिणंद मेटी कुशलखेमइ निज धरई । सब संघ आवइ ऋद्धि पावइ सुक्ख थावइ बहु परइ । इम महिमा जाणी भाव आणी करइ यात्रा आदरइ । सिद्धक्षेत्रनउ ते लाभ पामइ कहइ कनक सुविस्तरइ
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॥ इति श्री नगरकोट श्रीआदीश्वरस्तोत्रम् ॥ सं. १६३४ वर्षे कृतं पं. कनक सोमगणिना ॥ साधुसुंदररचित नगरकोटमण्डन श्री आदीश्वरगीतम्
नाभि भूपाल कुल चंदलउ हंसगति श्री जिनराय रे । देव नर नाथ प्रणमइ सही भाव करी जेहना पाय रे नगरकोट प्रभु भेटियइ आदि जिणेसर सार रे । अद्भुत महिमा जेहनी सेवतां वइ भव पार रे ॥ आंकणी ॥ कांगुडइ देहरउ दीपतउ देखतां हुइ आणंद रे । दुख दारिद दूर करइ सुक्ख तरुवरतणउ कंद रे नीरनिधि भूरि गंभीरिया धरणिधरसार पार धीर रे । सोवन वरण सोहामणउ पंचसय धनुष सरीर रे
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॥२॥नः ॥
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