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[२] શ્રી જેને સત્ય પ્રકાશ
[१८ है। लोगस्सको मोक्षप्राप्त जिनेश्वरोंकी स्तुति कहते हो और आगे जाकर लोगग्ससे भूतकालीन मावस्वपरूपका स्मरण होता है ऐसा लिखते हो यह दोनों वचन परस्परव्याहत है, भूतकालीन भाव नब विधमान था उस बख्त इस लोगस्तसे वह स्तुति विषय नहीं था, क्योंकि मोक्षप्राप्त निनेश्वरोकी स्तुति कहते हो तब उससे भूतकालीन भाषका स्मरण भी कैसे हो सकता है जो वाक्य तीर्थकरको स्पर्शा ही नहीं यह वाक्य किसी भी कालमें उनका स्मारक कैसे बन सकता है? लोगस्स नोसिद्धोंको विषय करता है ऐसा आप लिखते हो, जिस प्रकार केवलज्ञानसे पूर्व चे मोक्षप्राप्त जिनेश्वर नहीं कहलायेगें अतः लोगस्ससे भूतकालीन भावस्वरूपका स्मरण असंभाव्य है इस लिए सरिजीकी तर्क कुतर्क नहीं है, किन्तु सतर्क है आपकी ही कुतर्क है। कहीं पर मोक्षप्राप्त जिनेश्वरोंकी स्तुति कहते हो और कहीं पर भूतकालीन भावस्वरूपका स्मरण होता है, तीर्थकरके गुणानुवाद होते है, तब उसी अवस्थाका चिन्तन होता है ऐसा कहते हो अत एव इसके विषयमें गुरुजयंतीका उदाहरण असंगत है। क्योंकी जयंती पर नो हमारे वचन होते है वे भूतका. स्लीन भाषके ही होते हैं कि उनको वर्तमान अवस्थाके । तुम तो लोगस्सको मोक्षप्राप्त निनेश्वरोंकी स्तुति कहते हो तब तीर्थकरोंका गुणानुवाद उससे हो ही नहीं सकता और तीर्थकरत्व सिद्धावस्थामें नहीं है क्योंकि मब तक तीर्थकर नामकर्म होता है तब तक वे तीर्थकर कहलाते हैं उसका क्षय होमानेसे तीये. करत्व पर्याय सितावस्था में रह नहीं सकता है। सब लोगस्स 'यह वचन सिर विषयक माना जाय तो इससे भूत तीर्थंकरोंका गुणानुवाद असंभावित ही होगा। इस लिये इसके अलावा इत्यादि लिखकर सरिनीकी दीदुई बाधाको व्यर्थ सिद्ध नहीं कर सकते । और जिनको नयका ज्ञान न होवे घे ही 'मूर्ति पूजक लोग समवसरणके बाहर उन्हें जिनेश्वर नहीं मानते होंगे ' ऐसे आक्षेप करें।
(ज्मशः)
- संभोट १३री सूचना । - હવે ચતુર્માસ પૂર્ણ થયું છે એટલે વિહાર દરમ્યાન પૂન્ય મુનિ મહારાજને શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ' માસિકને દરેક અંક નિયમિત મળે અને વિહારના કારણે ગેરવલે ન જાય તે માટે એક સૂચના એ કરવાની છે કે-જેમને “શ્રી જન સત્ય પ્રકાશ” મોકલવામાં આવે છે તે પૂજ્ય મુનિમહારાજે અમને તેમનું એક નિશ્ચિત સરનામું લખી જણાવે, જ્યાં આગામી ચતુર્માસ સુધીના શેવ કાગળમાં અમે માસિક મોકલ્યા કરીએ. ટપાલના કાયદા મુજબ અમુક નિશ્ચિત કરેલ સરનામે મંગાવેલું માસિક, તેનું પેકીંગ તોડવામાં ન આવ્યું હોય તે, વધારાનું ટપાલ ખર્ચ ર્યા વગર જ તેઓ પિતાને ઠીક લાગે તે બીજે સ્થળે ટપાલ દ્વારા મંગાવી શકે છે. આશા છે, આ રીતે અમને નિશ્ચિત સરનામું લખી જણાવવાની પૂ. મુનિ મહારાજે અવશ્ય કૃપા કરો.
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