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तथाकथित अशोकस्तभोंका प्रयोजन
- [ स्तंभोके प्रयोजन विषयक विशिष्ट तर्क ]
लेखक: - भा. रं. कुलकर्णी, बी. ए., राजवाडे संशोधन मंडल, धुलिया.
भारतवर्ष में कौपांबी, सारनाथ, सांची आदि स्थानोंपर जो विशाल और अखंड शिलास्तंभ पाए जाते हैं, और जो स्तंभ सम्राट अशोकने बौद्धधर्म के प्रचारके लिए बनवाये थे ऐसा अभी तक समझा जाता था, वह न तो सम्राट अशोकने बनवाये हैं और न उनका बौद्धधर्मसे काई संबंध है, किन्तु इन शिल्पोंका निर्माता जैनसम्राट प्रियदर्शी
-यह सिद्धांत श्री. डॉ. त्रिभुवनदास लहेरचंद शाहने अपने 'सम्राट प्रियदर्शी ' नामक ग्रंथ में बडे परिश्रम और सफलता से प्रतिपादित किया है। इस पर भी ऐसा एक प्रश्न पूछा जा सकता है कि सम्राट प्रियदर्शीने ये स्तंभ क्यों बनवाये ? इसका उत्तर देनेका प्रयत्न इस लेख में मैं करना चाहता हूं ।
जिन पाठकोंने इन स्तंभोको प्रत्यक्ष या चित्र द्वारा देखा हो उनको यह याद होगा कि इन स्तंभो पर आमूलाग्र किसी प्रकारकी खुदाई नहीं है । भिन्नभिन्न स्तंभोपर भिन्नभिन्न शिरोभूषण पाये जाते हैं । जैसे सारनाथके स्तंभका शिखर चारों दिशाओंकी ओर मुख करके बैठे हुए सिंहोंसे सजा हुआ है । इलाहाबाद के कीलेमें जो स्तंभ मौजूद है उसके शिखर पर कोई कारीगरी नहीं है । किसी स्तंभ पर मगर है । किंतु एक बात सब जगह एकसी है कि ये स्तंभ लकडीके खंभे जैसे बिलकुल सरल हैं। और इतना ही नहीं, किंतु इन स्तंभोंके पृष्ठपर जहां प्रियदर्शीने अपनी आज्ञांए खुदवाई हैं उन आज्ञाओंके इर्दगिर्द न तो कोई वेलपत्ती, नकशी, महिराब या और किसी प्रकारकी खुदाई की हुई है ।
जब कोई विशिष्ट प्रयोजनसे ऐसे ऊंचे स्तंभ बनवाये जाते हैं तो यह बात वहां अवश्य पाई जाती है कि उन स्तंभोंका प्रयोजन बतानेवाली खुदी हुई शिला लगाने के लिये उनपर पहले ही से खास जगह छोडी जाती है । और इस शिलालेखके चारों औरकी मर्यादा सादी रेखाओंसे या नकशी सहित - रेखाओंसे बनाई जाती है । यदि इन स्तंभोका प्रयोजन या खास हेतु सम्राट प्रियदर्शीकी आज्ञाओंका प्रकाशन ही होता तो संभव था कि उन आज्ञाओंके लिये, स्तंभ बनानेवाले कारीगर, पहले ही से कुछ जगह मय मर्यादा के रख छोडते । भला, सम्राट प्रियदर्शी भी किसी विजयके स्मारकके कारण इन स्तंभोको बनवाता था ऐसी शंका भी उसके लेखोंसे निर्मूल हो जाती है । उन स्तम्भों में कहीं भी किसी विजयका नामोल्लेख नहीं है । और जो आदेश ऐसे स्तंभो पर खुदे हैं वैसे ही आदेश और स्थानों पर
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