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અંક ૨ ]
સાગરગથ્વીય સાધુઓની ઉપસ્થાપનાદિનાવલી
[૫૫]
प्रस्तुत पत्र किसी एक ही वर्षमें नहीं लिखा गया। प्रारम्भके 'शीर्षक लेख' में संवत १६९८ का निर्देश है और यह उपस्थापना-घटनावली तत्कालीन सागरगच्छीय आचाय श्रीवृद्धिसागरसूरिजीके राज्यमें लिखे जानेका सूचन है। परन्तु इस लेखमें संवत् १७३६ तककी उपस्थापनाओंका एक ही लिपिमें निरूपण है अतः यह लेख संवत् १७३६ के वर्षमें लिखा जाना प्रमाणित होता है। प्रारम्भमें जो संवत् १६९८ लिखा है उसका यह तात्पर्य हो सकता है कि इस सालमें आचार्य श्री वृद्धिसागर गच्छपति बने हों और १७३६ तक गच्छपति रहे हों जिससे आपके गच्छनायकत्वकालमें दी गई उपस्थापनाओंकी दिनावली आपके राज्यमें लिखे जानेका उल्लेख किया गया हो । कुछ भी हो पर इतना तो निर्विवाद सिद्ध है कि इनमें अधिकांश उपस्थापनायें श्री वृद्धिसागरसूरिजीके सत्तासमयमें हुई थीं, क्योंकि इनके प्राग्वी आचार्य श्रीराजसागरसूरिजी जो. सागरगच्छके आद्य प्रवर्तक थे संभवतः इस समयके पहले परलोकवासी हो चुके थे।
- संवत् १७३७ से संवत् १७४२ तककी उपस्थापनाओंकी सूची दूसरे व्यक्तिके हाथकी लिखी हुई है और संवत् १७४२ से १७४४ तककी घटनावलीको लिपि तो इसी व्यक्ति के हाथकी है पर कलम स्याही बदल गई है।
इसके आगेकी लिपि तीसरे व्यक्तिके हाथकी है जिसने १७५६ तककी उपस्थापना--दिनावली लिखी है। इस तीसरे आदमीके लिखे हुए लेख विभागमें कुछ संवत् मितियां अस्तव्यस्त भी लिखी हुई दृष्टिगोचर होती हैं। एकंदर इस पत्रमें संवत् १६९४ से लेकर संवत् १७५६ पर्यन्त के ६३ वर्षोंमें सागरगच्छके जिन जिन साधुओंकी उपस्थापनायें हुई थीं उन सबकी दिनावली इस पत्रमें दी हुई हैं। ___पत्रमें जिन साधुओंकी उपस्थापनाका उल्लेख किया गया है उनके अधिकांश नाम ‘सागरान्त' हैं। हां, कुछ नाम भिन्न प्रकारके भी हैं । इन भिन्न नामवाले साधु सागरगच्छके न होते हुए भी सागरगच्छीय आचार्यकी आज्ञामें रहनेवाले होंगे।
पत्रके तीसरे लेख विभागमें कुछ उन साधुओंकी उपस्थापनाको भी यादी है जो श्रीविजयप्रभसूरिजीके आज्ञावर्ती थे।
यह उपस्थापनादिनावलीका पत्र प्राचीन ढंगसे चलती लिपिमें लिखा हुआ है। मात्र ३-४ जगह फकरे जुदे पाडे गये हैं, परन्तु हमने सुगमताके लिये प्रत्येक फकरा जुदा पाडकर उसके पहले (१-१) इस प्रकारके कोष्ठकोंमें उपस्थापना और उपस्थापना लेनेवाले साधुओंकी संख्या बतानेवाले क्रमांक लिख दिये हैं।
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