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શ્રી જેને સત્ય પ્રકાશ
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चैत्य निर्माण कराकर आप ही के शुभ हाथ से प्रतिष्ठा करवाई । सं. १७७९ में खम्भात में चातुर्मास किया और शजय-माहात्म्य सुनाया जिसका प्रभाष यहां के श्रावकों पर इतना अधिक पडा कि शत्रुजय पर कारखाना (पीढ़ी) स्थापित कर वहां पर नवीन चैत्य एवं जीर्णोद्धार कराना प्रारम्भ किया । यह कारखाना वही है जो फिलहाल आनन्दजी कल्याणजीकी पीढी के नाम से प्रसिद्ध है । किसी जगह पर ऐसा उल्लेख पाया जाता है कि उक्त पीढी की स्थापना जोधपुरनिवासी संघपति राजाराम ने की थी, परन्तु दोनों के उपदेशक तो श्रीमद् देवचन्द्रजी ही हैं । श्रीमद के जीवनपर दृष्टिपात करने से एक बात का पता चलता है कि उन्होंने अपनी दिव्य पाशक्ति से बहुतसे ढूंढियों को प्रबोधकर सम्यक्त्व दिलाया था। अहमदाबाद में जो डेहले का भंडार है वह आप ही का संग्रह का कहा जाता है। आपका अवसान भो सं. १८११ में वहींपर हुआ था । खम्भात में एक उपाश्रय आपके नाम से मशहूर है । आपकी बहुत सी संस्कृत प्राकृत गुजराती गद्यपद्य रचनायें उपलंब्ध होती हैं । आपके स्तवन जैन समाज में बड़े चाव से गाये जाते हैं । आपका विस्तृत जीवन जानने के लिये “ जैन ऐतिहासिक काव्य संग्रह", गुजराती साहित्य परिषद की सातवीं रिपोर्ट, एवं 'जैनयुग' की फाइल आदि ग्रन्थ देखना चाहिये।
श्रीमद् देवचन्द्रजी की अनेक महत्त्वपूर्ण कृतियों में से स्नात्रपूमा भी एक है । जैनधर्म का पूजासाहित्य सुविस्तृत रूपेण उपलब्ध होता है, परन्तु सचित्र पूजा किसी भी मुनिराज की निर्माण की हुई अधावधि मेरे देखने या सुनने में नहीं आई । वर्तमान में मध्यप्रांत और बरार के मेरे विहार में मुझे कई अप्रकाशित ऐतिहासिक सामग्री प्राप्त हुई जिनमें से सचित्र स्नात्र पूजा का परिचय " श्री मैन सत्य प्रकाश" द्वारा जैन समाज को सर्व प्रथम कराया जा रहा है । इस प्रति में कुल २४ .चित्र हैं जिनका क्रमबद्ध वर्णन निम्न प्रकार है:--
. (१) भगवान श्री ऋषभदेवजी अष्टप्रातिहार्ययुक्त सुनहरी चित्र में अंकित हैं । चारों ओर सुन्दर बेल बनी हुई है। पत्र पर इस प्रकार गाथा लिखी हुई है: गाथा-"चउतीसे अतिसय जुओ......कुसुमांजलि मेलो"।
(२) दाहिनी ओर भगवान शांतिनाथजी और बांई ओर भगवान नेमिनाथजी के चित्र वर्णानुसार चित्रित हैं । छः गाथाएं पत्र पर लिखि हुई हैं।
(३) बाई ओर भगवान पार्श्वनाथजी एवं भगवान महावीर स्वामीजी के चित्र इन्द्रयुक्त बने हुए हैं । “सयल जिनवर............करी संघ सुजगीश" इतना पाठ पत्र पर लिखा हुआ है।
(४) बीस तीर्थकरों की मूर्तियां तीन पंक्ति में चित्रित है।
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