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શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ
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• The Lagna of the five Vishuwas or equinoctical days in a yuga is the rise of the Ashwini Nakshatra in the l'ttarayana and that in the five Dakshinayanas is the rise of the Swati Nakshatra.
-वेदांग ज्योतिष-पृ. ३० उपरके दोनों अवतरणोंमें स्थित विसंगति यह है कि इम लोककी संस्कृत टीकामें दक्षिणायनमें आनेवाले विषुव दिनका नक्षत्र अश्विनी है
और अंग्रेजी भाषांतरमें वही अश्विनी नक्षत्र उत्तरायण के विषुव दिनको जोड दीया गया है। डॉ. शाम शास्त्रीको मैंने इस विषयमें पत्र लिखा था। आप अपना अंग्रेजी भाषांतर ही यथार्थ प्रतिपादित करते हैं, कारण स्पष्ट है कि-अश्विनी नक्षत्रमें उत्तरायणका विषुवदिन याने वसंतसंपात यह आजसे लगभग दो हजार वर्ष पूर्व होता था। अन्यथा संस्कृत टीकाकारने लिया हुवा अश्विनी नक्षत्र दक्षिणायनका विषुव याने शरदसंपात होनेको कमसे कम १४००० चौदह हजार वर्षों से अधिक काल हो गया है।
ज्योतिष करंडकका यह लोक स्वभावतः क्लिष्ट और संभ्रमोत्पादक है। उसमें दो बार दक्षिणायन शब्द आनेसे उसका संबंध अश्विनीसे लगाना या स्वातीसे लगाना यह एक जटिल समस्या है। और जैन प्राचीन साहित्यके अंदर आनेवाले ज्योतिष विषयके अन्यान्य प्रमाणोंका सम्यक अभ्यास करनेवाले पंडित ही उसको हल कर सकेंगे।
चित्रा और स्वाति इनके बीच में वसंतसंपात रहनेका प्रमाण तो संस्कृत ज्योतिष ग्रंथ में पाया जाता है। शुल्बसूत्रके भाष्य कर्काचार्यका एसा स्पष्टवचन है । फिर उपर बताये हुए ज्योतिष करंडकके पद्यमें जो स्वातिका संबंध वसंतसंपातसे देखा जाता है वह भी यथार्थ क्यों न हो ?
यह एक ही नहीं ऐसे अनेकानेक प्रश्न उपस्थित होते हैं। आवश्यकता है उनकी ओर ध्यान देकर उस दिशासे जैन साहित्यका संशोधन करने वालोंकी । जैन जनता धार्मिक है, उदार है और धनवान भी है । वह चाहे तो अपने प्राचीन धार्मिक साहित्यका ऐतिहासिक और तुलनात्मक पद्धतिसे अभ्यास करनेवाले विद्वानोंको प्रोत्साहन देकर भारतीय संस्कृतिका गौरव बढानेमे अशभाक् हो सकती है और होवे यह प्रार्थना है ।
નેધ-આશા છે કે જેન તિષના જાણકાર પૂજય મુનિરાજે આ લેખમાં પૂછવામાં આવેલ શંકા ઉપર વિચાર કરી તેને ખુલાસે લખી મોકલવા કૃપા કરશે. આ ખુલાસો મળશે તો અમે તે પ્રગટ કરીશું.
1 संपात बिंदूकी वाम गति है और नक्षत्रचक्रकी एक पूर्ण प्रदक्षिणा लगभग २६००० वर्ष में होती है। हाल वसंतसंपात उत्तरा भाद्रपदा नक्षत्र में है अश्विनीसे उत्तरा भाद्रपदा तकका दो नक्षत्रोंका अंतर १४ हजार वर्ष पूर्व होता था।
२ पं. दी. चुलेटः 'वेदकालनिर्णय' ।
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