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મંત્રીધર જયમલજી
किनारे बसा हुआ है । यहां पर जयमलजीने वहां के शासक रहते कई जैन मंदिर और उपाश्रय बनाये थे, 'जो आज भी विद्यमान है ।
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समय
जालौर के किले में तीन जैन मंदिर हैं, जो जयमलजी की धार्मिक यशपताका को सर्वत्र फैला रहे हैं ।
राजा कुंवरपाल के समय का बना हुआ जैन मन्दिर गिर गया था । उसकी नींव मात्र शेष रह गई थी । उसी स्थान पर जयमलजी ने मंदिर बनवा कर वि. सं. १६८१ प्रथम चैत्र वदि ५ ( ई. सं. १६२५ ता. १७ फरबरी) को महावीरस्वामी की मूर्ति बनवाकर प्रतिष्ठित करवाई । यह मन्दिर महावीरस्वामी के मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है । इसी मंदिर के निज मंदिर में दो कमरे हैं, जिनमें से एक में धर्मनाथ की मूर्ति है, जिसकी भी वि. सं. १६८३ अषाढ वदि ४ ( ई० सं. १६२७ ता. २४ मई ) गुरुवार को जयमलजीने प्रतिष्ठा करवाई थी । और दूसरे कमरे की मूर्ति पर उसी संवत् का लेख है, जो उद्धरण तत्पुत्र तोडरा ईसर टाहा दुहा हांरा ने प्रतिष्ठा करवाई थी, जिसकी प्रतिष्ठा भ. श्री विजयदेवसूरि ने की थी ।
महावीरस्वामी की मूर्ति पर इस तरह का लेख खुदा हुआ है ।
॥ ६० ॥ संवत १६८१ वर्षे प्रथम चैत्र वदि ५ गुरौ अग्रेह श्रीराठोडवंशे श्रीरसिंघपट्टे श्रीमहाराज गजसिंहजी विजयिराज्ये वृद्ध उसवाल ज्ञातीय सा० जेसा भार्या मनोरथदे पुत्र सा० सादा सुभा सामल सुरताण प्रमुख परिवार : पुण्यार्थ श्री स्वर्णगिरिगह (ढ) दुर्गा परिस्थित श्रीमत् कुमरविहारे श्रीमति महावीर चैत्ये सा० जेसा भार्या जयवंतदे पुत्र सा० जयमलजी वृद्धभार्या सरूपदे पुत्र सा० नहणसी सुंदरदास आसकरण लघुभार्या सोहागदे पुत्र सा० जगमालादि पुत्रपौत्रादि श्रेयसे सा० जयमलजीनाम्ना श्रीमहावीर बिंबं प्रतिष्ठामहोत्सव पूर्वकं कारितं प्रतिष्ठितं च श्रीतपागच्छपक्षे सुविहिताचारकारक शिथिलाचार ग ( निवारक साधुक्रियोद्धारकारक श्री आणंद विमलसूरिपट्टप्रभाकर श्री विजय दानसूरिपट्टशंगारहार महाम्लेच्छाधिपतिपातशाहि श्री अकबरप्रतिबोधक तद्दत्तजगद्गुरुविरुदधारक श्रीशत्रुंजयादितीर्थजीजीयादिकरमोचक तद्दषण्मास अमारिप्रवर्तक भट्टारक ५ श्रीहीर विजयसूरि पट्टमुकुटायमान भ श्री ५ विजयसेन सूरिपट्टे संप्रतिविजयमानराज्यसुविहितशिरः शेखराय माण भट्टारक श्री ५ विजयदेवसूरीश्वराणामादेशेन महोपाध्याय श्रीविद्यासागरगणिशिष्य पंडित श्री सहजसागरगणिशिष्य पं० जयसागरगणिना श्रेयसे कारकस्य ॥+
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श्री धर्मनाथ की मूर्तिपर इस तरह का लेख खुदा हे
॥ संवत् १६८३ वर्षे आषाढवदि ४ गुरौ श्रवणनक्षत्रे श्री जालौर नगरे
+ पुरातत्त्वाचार्य मुनि जिनविजयजी संपादित प्रा. जै लेख संग्रह भाग २ में प्रकाशित |