SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 5
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समीक्षाभ्रमाविष्करण [ याने दिगंबर मतानुयायी अजितकुमार शास्त्रीए " श्वेताम्बर मत समीक्षा "मां आळेखेल प्रश्ननो प्रत्युत्तर ] लेखक- आचार्य महाराज श्रीमद् विजयलावण्यसूरिजी ( गतांकथी चालु ) आशाम्बरीय आक्षेप सूत्रकार भगवन्तना अने टीकाकार महाराजना आशयने नहि समजनार आशाम्बर लेखके करेल आक्षेपः “ अति प्रमादि और हुवा भी खा सकता है. मान्य है. क्योंकि उन्होंने वह मद्य मांस भक्षण कर लोलुपी मुनि मद्य मांस मुनि अवस्था में रहता यह मूलसूत्रकार और संस्कृत टीकाकारको यहां कोई ऐसा स्पष्ट निषेध नहि किया कि मुनि न रह सकेगा । " आक्षेपनो सारांश आ आक्षेपमां लेखक एम जणाववा मागे छे के अतिप्रमादी अने लोलुपी मुनि मांस मदिरा वापरे तोपण मुनिपणामां वांधो आवतो नथी. आवो सूत्रकार तथा टीकाकारनो मत छे, वारु कारश शुं ? मांस मदिरा बापरे तो मुनिपणुं रही शकतुं नथी आवा चोक्खा शब्दो आ स्थानमां मुक्या नथी माटे आक्षेपमां भरेली निबिड अज्ञता आ आक्षेप बुद्धिमार्गथी केटलो वेगळो छे ए मूल अने टीकानां वचनो जोनार सारी रीते समजी शके तेम छे । लेखके ध्यान राखवानी जरूरत हती के प्रस्तुत पाठनो आ विभाग शुं भक्ष्य ? शुं अभक्ष्य ? आने वापरनार साधु ? या असाधु ? एम जणाववा माटे छे । जे पाठ जेने अंगे होय तेने मुख्यताए प्रतिपादन करे, आथी 'मांस मदिरा वापरनारमां साधुपशुं टकी शकतुं नथी' एवा शब्दो प्रस्तुत विभागमां न मुकाय, तेने अंगे मानी लेवुं के त्रकार अने टीकाकार तेनी पुष्टिमां छे, या तेनो आ मत छे, ते खरेखर निबिड अज्ञताने आभारी छे । जेम कोई सुज्ञ पिता कदाचित् दारुपीठामां द्यूतक्रीडानी सम्भावना जाणी पुत्रने शिखामण आपे के ' हे वत्स, दारुपीठामां जुगटुं न खेलतो एथी आपणा कुलने कलंक लागे ' आमांथी कोई एवं माखण काढे के दारुपीठामां दारु पीवो, अने अन्यत्र जुगढुं रमवुं. एवो आनो मत छे, कारण के तेना निषेधके तेषा स्पष्ट शब्दो For Private And Personal Use Only
SR No.521532
Book TitleJain Satyaprakash 1938 05 06 SrNo 34 35
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1938
Total Pages46
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy