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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [३८०] શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ [१५३ का दिन नियत किया। वाद के लिये यथा योग्य नियम भी लिखे गए। पाटन शहर में घर घर जोरों से वाद की चर्चा चलने लगी। वादी प्रतिवादी दोनोंके बीचमें इस प्रकार शर्त हुई कि यदि देवसरि वादमें हार जाय तो वे और समस्त श्वेताम्बर दिगम्बर हो जाय और कुमुदचन्द्र हार जाय तो वे गुजरात छोडकर चले जाय। यहां पाठक समझ सकते हैं कि देवसरिकी प्रतिज्ञा कितनी कडी थी? क्योंकी सूरिजीको अपनी आत्मशक्ति पर पूरा विश्वास था। वि. सं० ११८१के वैशाख शुक्ला पूर्णिमाके शुभ दिन में यह वाद आरम्भ हुआ । राज-सभामें वादी प्रतिवादो उपस्थित हुए। सभापति के स्थान पर स्वयं गुजरातके राजा सिद्धराज जयसिंह बैठे। उत्साहसागर महर्षि और राम नाम के तीन विद्वान राजाके सलाहकारक नियुक्त हुए। और देवतरिके पक्षमें पोरवाड जातिके महान कवि श्रीपाल और भानु नामक विद्वान थे। राजसभा में दोनो पक्षके सभासद एकत्रित हुए । राजाने कुमुदचन्द्रको वादविवाद आरम्म करने के लिए कहा । कुमुदचन्द्रने वाद आरम्भ करने के पूर्व राजाको निम्न आशीर्वाद दोयाःखद्योतद्युतिमातनोति सविता जीर्णिनाभालय च्छायामाश्रयते शशी मशकतामायान्ति यत्राद्रयः । - इत्थं वर्णयतो नभस्तव यशो जातं स्मृतेर्गोचरं, , तद्यस्मिन् भ्रमरायते नरपतेः वाचस्ततो मुद्रिताः॥ . उपर्युक्त स्तुति के पश्चात् कुमुदचन्द्र अपना पक्ष सिद्ध करने लगा, नग्न रहनेमें मुक्ति है, स्त्री मोक्ष नहीं जाती और केवलो भोजन नहीं करते हैं, यह कुमुदचन्द्रका पक्ष था । उपर्युक्त बातोंका उत्तर देने के पूर्व देवमूरिने राजाको निम्न आशीर्वाद दीया । नारीणां विदधाति निर्वृतिपदं श्वेताम्बरप्रोन्मिषत . कीर्तिस्फाति मनोहरं नयपथप्रस्तारभंगीगृहम् । यस्मिन्केवलिनी न निर्जितपरोत्सेकाः सदा दन्तिनो, राज्य तज्जितशासनं च भवतश्चौलुक्य! जीयाच्चिरम् ॥ उपर्युक्त स्तुति के पश्चात् देवमूरिने बडी खूबी के साथ कुमुदचन्द्रके सिद्धान्ताका युक्ति प्रयुक्ति से खण्डन किया, और यह सिद्ध कर दिया कि स्त्री मोक्ष जा सकती है, केवली आहार लेते हैं। नग्नत्वके अतिरिक्त भी मोक्ष जासकते हैं। इन्होंने ये युक्तियें अपने न्यायशास्त्र के सिखानेवाले वादिवेताल श्री शान्तिमूरिजीकी रची हुई उत्तराध्ययन सूत्रकी टीका मेंसे ली थी । उनके धारावाहि बोलने तथा सचोट दलीलों से For Private And Personal Use Only
SR No.521532
Book TitleJain Satyaprakash 1938 05 06 SrNo 34 35
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1938
Total Pages46
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size16 MB
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