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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ©#O=D#0#0===®⠀ दिगम्बर शास्त्र कैसे बनें ? लेखक - मुनिराज श्री दर्शन विजयजी शुभचंद्रकी अंगपन्नति, पञ्चास्तिकाय गाथा ४५त्र की वृत्ति ब्र० शीतलप्रसादकी हींदी टीका, ब्रह्म हेमचन्द्रका सूख में, हरिवंशपुराण सर्ग १० वा और सोमसेनका 'त्रिवर्णाचार' वगैरह दिगम्बर ग्रन्थों में प्राचीन जिनागम - अंग- १२ व प्रकीर्णक १४ - का निरूपण इस प्रकार है १. आचारांग - मुनिआचारका कथन । २. सूत्रकृतांग -- ज्ञानक्रिया इत्यादिका विचार, पाखण्डी के क्रियाभेद । ( पांचवे अंक से क्रमशः ) प्रकरण ३ – मूलं नास्ति कुतः शाखा ? g ३. स्थानांग - अनुक्रमसे १ से १० संख्या वाले पदार्थों का वर्णन | संग्रह | ४. समवायांग पदार्थों के समानधर्मका परिचय । जैसे कि धर्मास्तिकाय एवं अतिकाय प्रदेश में समान हैं वगैरह । ५. व्याख्याप्रज्ञप्ति गणधर क ६०००० प्रश्नों का उत्तर । ६. ज्ञातृकथा --- अनेक धर्मकथाओंका ७. उपासकाध्ययन- - श्रावकधर्म का Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निरूपण । ८. अंतकृत् दशांग - मोक्षमें गये हुए दश दश मुनिओंके चरित्र | OMDOM ९. अनुत्तरोपपातिकदशांग - विजयादि ५ अनुत्तरविमान में उत्पन्न हुए दश दश मुनिओंके चरित्र । -धन्य धान्य जय १०. प्रश्नव्याकरणविजय वगैरह प्रश्न के उत्तर, व आक्षेपिणी प्रमुख ४ अनुयोगोंके स्वरूप | ११. विपाक विपाक - फलका कथन | उदयप्राप्त कर्मों के १२. दृष्टिवाद १. परिकर्म, २. सूत्र, ३. प्रथमानुयोग, ४. पूर्वगत व ५. चूलिका ऐसे ५ अधिकार है । (१) परिकर्म में चंद्रप्रज्ञप्ति, सूर्यप्रज्ञप्ति, जम्बूद्वीपति, द्वीपसागरप्रप्ति और व्याख्याप्रज्ञप्ति | (२) रात्र - ३६३ पाओं के एकान्तवाद | (३) प्रथमानुयोग में-- ६३ शलाका पुरुष के चरित्र । (४) पूर्वगत में - (५) चूलिका में व आकाशविद्या | For Private And Personal Use Only १४ पूर्व । जल स्थल मायारूप ये उपर कहे १२ अंग हुए। अब १४ प्रकीर्णक इस प्रकार हैं:
SR No.521507
Book TitleJain Satyaprakash 1936 01 SrNo 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1936
Total Pages44
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size20 MB
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