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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir સમીક્ષાશ્રમાવિષ્કરણ ૨૫ - भावार्थ-बीज, वनस्पति, बेइन्द्रियादिक, लागे परन्तु कचराता जीवने खुल्ला पग करतां मृत्तिका अने अग्नि विगेरेना परिहारपूर्वक चर्मवाळा पगथी कांइक वधारे कीलामणा पगना अग्र भागथी आगल धेसरा प्रमाण थशे। आना जवाबमां जणाववानुं जे कांइक भूमिर्नु अवलोकन करता करतां मुनि विहार वधारे कीलामणानो संभव छे माटे तो उत्सर्गकरे। कोइ प्रबल कारणे कदाचित् तलियां मार्गथी त्याग बतावेल छे। परन्तु खुल्ला पगमां पगे बांध्यां होय तो एमां ईर्यासमितिमां शो एनाथी कांइक उतरता दरजानी कीलामणानो वांधो आवे छे ? शुं आंखो विंचाइ जाय छे संभव छे तो पछी खुल्ला पगे पण चालवू न के जेने लइने धेसरा प्रमाण जग्या जोइ जोइए। कारणे ज चालवानुं छे, कारण शकाती नथी ? अथवा तो शुं जीवजन्तुवाळा सिवाय नहि; एम कहेता हो तो तळियां स्थान पर पग नहि मुकता बीजे जे पग बांधवानुं पण कारणे ज छे, कारण सिवाय मुकवानो छे तेने रोके छे ? आना जवाबमां नहि । ज्यां उघाडा पगथी निर्वाह न थतो कहेवू पडशे के नथी आंग्वो वींचाइ जतो होय तेने माटे ज लाभालाभनी तुलनाए छे । अथवा नथी तो उचित स्थाने पग मुकवामां ___कदाच एम कहो के, अमारं कहेवू बांधो आवतो । एवं छे के उघाडा पग करतां चामडाना कदाच एम कहो के पग नीचे जीव- तळियावाळा पगथी कचराता जीवने विशेष जन्तु आवी जाय तेनुं शुं श्राय : आना कीलामणा थवा सम्भव छे, माटे ईर्यासमिति जवाबमां जणाववानुं जे उघाडा पग होय बनी शके नहि । आना जवाबमां जणाववानुं अने जीवजन्तु आवी जाय तेनुं शुं करशो? जे शं कीलाभणामात्र ईर्यासमितिनी बाधक उपयोग राखे तो न आवे एम कहेता हो तो छे, अथवा तो कीलामणाविशेष बाधक छे ? अहींया पण उपयोग विशेष रावशे । कीलामणामात्र ईर्यासमितिनी बाधक छे ___ कदाच एम कहो के अजाणमां आवी एम जो कहेता हो तो, एवो अर्थ थशे के, जाय तो शुं थाय ? आना जवाबमां जाणावानुं मुनिने गमनमा नानी मोटी कोइ पण जातनी जे खुल्लापगवाळाने अजाणतां आवी जाय कीलामणा थती होय तो ईर्यासमितिनो नाश तेनुं शुं करशो ? उपयोगशून्यने दोष लागे छे थाय छे । आQ मानवा जता, खुल्ला पगमा अने अहीया तो उपयोग छे माटे दोष न भले ओछी किलामणा थइ होय तो पण लागे, एम जो कहेता हो तो, अमो पण किलामणा तो छ ज, माटे खुल्ला पगवाळाने कहीशु के उपयोग छे माटे दोष लागे नहि। पण ईर्यासमितिनो नाश थइ जशे । कदाच एम कहो के मुनि उपयोगवन्त कदाच एम कहो के-कीलामणा विशेष होवाथी भले तमने अध्यवसायकृत दोष न ईर्यासमितिनी बाधक छे तो एवो अर्थ शे For Private And Personal Use Only
SR No.521507
Book TitleJain Satyaprakash 1936 01 SrNo 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1936
Total Pages44
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size20 MB
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