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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org समीक्षाभ्रमाविष्करण 46 [ याने दिगम्बरमतानुयायी अजितकुमार शास्त्रीए “ श्वेताम्बरमतसमीक्षा "मां आळेखेल प्रश्ननो प्रत्युत्तर ] लेखक - उपाध्याय श्रीमद् लावण्य विजयजी महाराज ( गतांकथी चालु ) क्या साधु चर्मका उपयोग भी करे ? त्रिज बात ए सूचवामां आवी हती के - - चामडु शरीरने सुख पहांचाडवा माटे छे। आना जवाबमां जणाववानुं जे वस्त्र करतां चाडु वधारे सुखकारी छे, आ वात कोइ पण अक्कलवाळो मानी शके तेवी नथी । कदाच भाग्ययोगे लेखकनी आ बात जो साची पडी जाय तो तो कापडीयाना बार ज वागी जाय अने चर्मकारने तो फुरसद ज मळे नहि । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir के कदाच लेखक एम कहे के वस्त्र करतां चामडु वधारे सुखकारी छे एवं अमे कहेता ज नथी, अमारुं तो कहेतुं मात्र एटलं ज छे चामडु शरीरने सुख पाचाडनार छे । आ बाबत पण लेखकने पूछवामां आवे छे के शुं चामड वस्त्रथ वधारे सुख आपनार छे? अथवा वस्त्रना जेटलं ज सुख आपनार छे? अथवा तो वस्त्र करतां ओलुं सुख आपनार छे ! वस्त्रथी वधारे सुख आपनार छे एम जो कहता हो तो ते व्याजबी नथी । कारण के जो तेमां बधारे सुख होय तो जगतना सुख-प्रधान जीवो वस्त्र छोडी छोडीने चर्म परवानी प्रवृत्तिवाळा थइ जवा जोइए, अने थयेला देखाता नथी । कदाच एम कहेवामां आवे के चर्म aa करतां वधारे सुखकारी ज छे परंतु हिंसाना भयशी लोको वापरता नथी तो आ वात पण व्याजबी नथी, कारण के जे लोको हिंसाने मानता नधी अथवा हिंसको छे ते केस बनो त्याग करीने चर्मने वापरता नथी ? वना जेवुं ज चामडामां मुख हे एम जो कहता हो तो ते पण व्याजबी नथी, कारण के वस्त्रनी जेम चामडु पहेरवामां पण लोकोनी प्रवृत्ति थइ जवी जोइए, अने छे नहि । कदाच एम कहो के वस्त्र करतां चामडामा ओछु सुख छे तो एना जवाबमां auraवानुं जे औत्सर्गिक वस्त्रनुं विधान छे For Private And Personal Use Only
SR No.521507
Book TitleJain Satyaprakash 1936 01 SrNo 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1936
Total Pages44
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size20 MB
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