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समीक्षाभ्रभाविष्करण
याने दिगम्बरमतानुयायी अजितकुमार शास्रीए " श्वेताम्बरमतसमीक्षा "मां
आळेखेल प्रश्ननो प्रत्युत्तर ] लेखक-- उपाध्याय श्रीमद् लावविजयजी महाराज
( मतां श्धी चाल ) क्या साधु चर्मका उपयोग भी करे ? प्रसङ्गोपात आपणे कांइक विचार के शक्तिवहारनी वस्तुमा माणस क्यां करी लाइश के परिग्रहनी वावतमा दिग- सुधी टकी शके ? कदाच अमुक बाबतमां म्बर-दर्शन क्यां सुधी पहोंच्यु छे। जे आग्रह पकडी राखे तो वीजुं वेठवू पडे, नग्नपणुं देखीती रोते लोक-विरुद्ध छे, बलाबलना विचार कर्या सिवाय आग्रहजेमां अनेक अनर्थ समारेल छ, जेने थी, कोइ वात छोडोने नवी पकडवाम माटे आ लेखकज आगल जणावे छे आवे तो घमां फायदो नीकलतो नर्थ के नग्नदिगम्बर मुनने देखीने एक लो परंतु अमुक अंशे नुकशान वेठवू पडे है डरी गइ, अने अकस्मात् गर्भावात थयो, “भैस वेचोने लोधी घोडो, ज्यां उततो अने हाहाकार मची गया तथा गोच- माखणनो पीडो त्यां उतरवा मध्यो रोमां आयेला दिगम्बर मुनिना लिङ्गो लादनो लोंडो" स्थानने अंगे प्रायश्चित्तो पण बतावा दिगम्बर-शास्त्रमा परिग्रहना वरूप पडयांछे। आश नग्नपणानो पण आन- माटे जुओ सूलाचार:हवशात् दिगम्बरोए तमाम सुनिने माटे
जीवणिबद्धाबद्धा स्वीकार को अने वस्त्रत्यागमा सूचक
परिग्गहा जीवसंभवाव । दिगम्बर, आशाम्बर विगेरे बोझै
तेसि सकच्चागो लगाव्यां।
इयरम्हि य णिम्मओअंगो॥९॥ एवी रीते हस्त भोजन के जेमां [जीवनिबद्धाबद्धाः अन्न पाणी विगेरेना कणोया अने बिन्दु
परिग्रहा जीवसंभव चैव । ओगें नीचे पडवं विगेरे अनेक अनुचित तेषां शक्यत्याग समायेल छ, आवा करपात्रीपणाने स्वो
इतरस्मिश्च निर्ममोसङ्गः ॥९॥ कार्यु, अने पानो त्याग बताव्यो। भावार्थ जीवने आश्रीने रहेग एवा अमो पहेरवाने वस्त्र पण नथी राखता, देह मिथ्यात्व, वेद, राग, हास्य रति, खावाने पात्र पण राखता नथी विगेरे अरति, शोक, भय, जुगुप्सा क्रोध, उत्कृष्टतानो बहादुरी तो घणी बतावी मान, माया, लोभ विगेरे, अथव दास, पण वस्तुतः नमो शमी नाही कारण दासी, गाय, घोडा विगेरे ज्वनिबद्ध
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