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दिगम्बर शास्त्र कैसे बने ?
लेखक:-मुनि दर्शनविजयजी
२ संघभेद श्रमणभगवान् महावीरस्वामीने सं. वर्ग चारित्र रक्षण के जरिए वस्त्रोंको ३० वीरनिर्वाणपूर्व में-बी. सी. ५५७ धारन करते थे। कोइ कोइ साधु अमें साधु साध्वी श्रावक और श्राविका वस्त्र भी रहते थे । उन समयमें २३ वें के सम्मेलनरूप "श्रमणसंघ" की तीर्थकर भगवान् पार्श्वनाथ के संतानीय स्थापना की। उन संघमें न ब्राह्मण श्रमणगण विद्यमान थे, जो प्रकृति के क्षत्रियका वर्णभेद था, न मरद जनाना सरल थे प्राज्ञ थे ओर विविध रंगवाले का जातिभेद था।
वस्त्र के आज तक धारक थे, बाद में वे भगवानने मोक्ष-प्राप्तिके मार्ग ब- भगवान महावीर के शासनमें आ कर ताए, उनमें भी न वस्त्रधारी या नंगे मिल गए। उसी समय उन श्रमणोने रहेने का आग्रह था, न कि षुरुष-स्त्रीका भी विविध रंगवाले एवं अपरिमित पक्षपात था।
वस्त्रों के भोग को छोड कर जीर्ण-शिर्ण भगवान महावीर स्वामीने आम- -परिमित ही वस्त्रों को पहेनने का तोरसे फरमाया कि-पुरुष हो नारी हो स्विकारा। ब्राह्मण हो शूद्र हो आर्य हो अनार्य बौद्धोंके दिव्यादान (१२।१४२. हो वस्त्रवाले हो नंगे हो याने कोई १४३) अवदान कल्पलता (पल्लव १७। भी हो मगर सम्यक्दर्शन सम्यक्ज्ञान ४११) व मज्झिमनिकाय ( चूल सागएवं सम्यकचारित्रके धारक, विना रोक रोपमसूत्तंत १।३।१० सन्दक २।३।६ टोक मोक्षमें जा सकते हैं। महासुबुलुदायिसुतंत २।३।७) वगेरह
ऐसे स्याद्वाद शासन में एकांतवाद ग्रन्थोंके अनुसार उन समयमें शाक्यसिंह -हठवादका नाम निशान भी नहीं था। गौतमबुद्ध के ६ बडे प्रतिस्पर्धि धर्मा· भगवान महावीरस्वामी के शिष्य- चार्य माने जाते थे। वे सभी गणपति,
७ पूर्णकाश्यप, मक्खली गोसाल, अजित केश-कम्बली, प्रक्रुध कात्यायन, - संजय वेलट्ठिपुत्त, निगंठ नात-पुत्त । मज्झिम० पत्र. १२४, ३००, ३०५ ।
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