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158 रीतिका गर्ग
SAMBODHI विशेष महत्व दिया जाने लगा ।१३ नायिका-भेद के विस्तार तथा विशदीकरण के लिए पर्याप्त उपयुक्त वातावरण में रीतिकालीन कवियों ने नायिकाओं के सौन्दर्य तथा प्रगाढ़ रागात्मकता की अनेक स्थितियों में उनके अनेक सूक्ष्म एवं कल्पना प्रवण चित्रों की अवतारणा की है। उसी प्रकार चित्रकारों ने रंग और रेखाओं के माध्यम से उसे सजीव किया है। आलम्बन के अन्तर्गत आचार्यों ने नायिका-भेद के विभिन्न आधार माने हैं जो इस प्रकार हैं -
१. जाति (प्राकृतिक वर्ग) - पद्मिनी, चित्रिणी, शंखिनी और हस्तिनी । २. कर्म (धर्म या लोकरीति) - स्वकीया, परकीया और सामान्या । ३. वय
- मुग्धा, मध्या ओर प्रौढ़ा । ४. पति का प्रेम
___ ज्येष्ठा, कनिष्ठा । ५. मान
- धीरा, अधीरा, धीराधीरा । ६. दशा
गर्विता, अन्य-सुरति-दुःखिता, मानवती । ७. अवस्था (काल) - स्वाधीन-पतिका, उत्का, वासक सज्जा, अभिसंधिता,
खंडिता, प्रोषितपतिका, विप्रलम्भ तथा अभिसारिका । ८. प्रकृति या गुण
- उत्तमा, मध्यमा तथा अधमा ।१४ हिन्दी रीतिकालीन साहित्य में जिस प्रकार नायिकाओं का विभिन्न आधारों पर विविध रूप से वर्णन किया गया है, उसी प्रकार मध्यकलीन चतुर चितेरों ने उन्हें अपने रंग और रेखाओं के द्वारा अभिनव हृदयग्राही चित्रों में साकार किया। कवि को काव्य-धर्म के निर्वाह में लगभग सभी नायिकाओं के गुण का वर्णन अनिवार्य-सा हो गया था। परन्तु तत्कालीन चित्रकारों के लिए ऐसा बन्धन न था। उन्होंने श्रेष्ठ, सुन्दर तथा मनमोहिनी नायिकाओं का ही चित्रण अधिकतर किया है। इन चित्रकारों की रूचि हस्तिनी, सामान्या (वेश्या), अधमा आदि नायिकाओं के चित्रण में बिलकुल नहीं रही । नायिकाओं के भेदों उपभेदों का कोई अन्त नहीं है और जिस प्रकार कवियों ने उनकी विशेषताओं का विशद वर्णन किया है उसी प्रकार सम्पूर्ण ग्रन्थ चित्रण में चित्रकार ने उनको रूपायित करने का भरपूर प्रयास किया है लेकिन उसका मन पद्मिनी नायिका के रूप लावण्य को उनके प्रमाणानुसार चित्रित करने में अधिक रमा है ।१५
नायिका-भेद के चित्रों में अवस्थानुसार अष्ट नायिकाओं का चित्रण कांगड़ा के चित्रकारों की पहली पसन्द थी अतएव उनका चित्रण यहाँ के चित्रकारों ने अपूर्व कुशलता के साथ किया है । चित्रकारों ने इसी सन्दर्भ में प्रकृति का चित्रण भी अलंकारिक रूप के साथ-साथ प्रतीकात्मक रूप में परिस्थिति के अनुकूल भी किया है। यदि नायिका विरहोत्कण्ठिता है तो उसे विलोवृक्ष के नीचे खड़ा दिखाया है तथा वातावरण को भी शुष्क रूप में चित्रित किया है और यदि मुदितावस्था में दिखाया गया है तो उसे सारस के जोड़े, तेज बहती नदी, उछलते फव्वारे व झूमते हुये फलफूलों से लदे वृक्षों के साथ अंकित किया