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Vol. XLI, 2018
संस्कृत तथा फारसी के क्रियापदों में साम्य
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सन्दर्भ :
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१. वैदिक देवताः उद्भव और विकास, डॉ. गयाचरण त्रिपाठी, पृ. सं. ५० २. भाषाविज्ञान एवं भाषाशास्त्र, कपिलदेव द्विवेदी, पृ. सं. ४४५ ३. संस्कृत भाषा-विज्ञान, पृ० सं० १२२, डो राजकिशोर सिंह ४. भाषा-विज्ञान (Comparative Philology and Hist. of Linguistic), पृ० सं० १०५ , डॉ कर्ण सिंह ५. The Sanskrit Language, पृ० सं० ०१, अनुवादक - डॉ॰ भोलाशंकर व्यास ६. The Sanskrit Language, T. Burrow, Page - 6
AVESTA GRAMMAR, A. V. Williams Jackson, Introduction, p. xxxii भाषाविज्ञान एवं भाषाशास्त्र, कपिलदेव द्विवेदी, पृ० सं० ४५० आधुनिक फारसी के शब्द-भण्डार में भी अरबी शब्दों का बाहुल्य है, आज की फारसी में अरबी के लगभग ७० फीसदी शब्द शामिल हैं। हों भी क्यों न, क्योंकि अरबों के आगमन के साथ विक्रम संवत्सर के आठवीं शती में ही इसकी लिपि पहलवी (फारसी) से अरबी हो गयी है, जो आज भी वर्तमान है । फारसी में ३२ वर्ण हैं जिनमें
मात्र ४ व्यंजनवर्ण पे, जीम, झे और गाफ ही फारसी के हैं, इन वर्गों का प्रयोग अरबी में नहीं होता है। १०. संस्कृत का भाषाशास्त्रीय अध्ययन, डॉ० भोलाशंकर व्यास, पृ० ७९ ११. 'मृदो लः' प्राकृत-प्रकाश-७.५४ १२. यास्क, निरुक्त, प्रथम अध्याय, पृ० ०२ १३. तदाख्यातं येन भावं स धातुः (ऋ० प्रा० १२.१९)
क्रियावाचकमाख्यातम् (ऋ प्रा० १२.२५) १४. संस्कृत व्याकरण दर्शन, पृ० १५६, त्रिपाठी, रामसुरेश १५. निरुक्त, पृ० सं० ०६ १६. वाक्यपदीयम्, ३.८.१२ १७. प्रक्रियानुसारि-पाणिनीयधातुपाठ, पृ० सं० ०१ १८. कर्तरि शप्, पा० अ० ३.१.६८ १९. अद्प्रभृतिभ्यः शप्, पा० अ० २.४.७२ २०. जुहोत्यादिभ्यः श्लुः, पा० अ० २.४.७५ २१. दिवादिभ्यः श्यन्, पा० अ० ३.१.६९ २२. स्वादिभ्यः श्नुः, पा० अ० ३.१.७३ २३. तुदादिभ्यः शः, पा० अ० ३.१.७७ २४. रुधादिभ्यः श्नम्, पा० अ० ३.१.७८ २५. तनादिकृभ्युः उः, पा० अ० ३.१.७९ २६. ादिभ्यः श्ना, पा० अ० ३.१.८१