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________________ 184 विजयशंकर शुक्ल SAMBODHI संरक्षण के अन्तर्गत पाण्डुलिपियों के प्रकाशन की योजना तैयार की जिसके तत्त्वावधान में यह निश्चित हुआ कि भारत के विभिन्न संग्रहालयों में उपलब्ध सौ श्रेष्ठतम पाण्डुलिपियों का सम्पादन एवं प्रकाशन मार्च २०१२ तक पूर्ण किया जायेगा । इसके लिये ५०० ग्रन्थों की एक सूची बनाने का कार्य प्रारम्भ हुआ । पभी कार्य इतनी तेजी से आगे बढे कि भारत सरकार को सितम्बर २००९ में अगले पांच वर्षों के लिये मिशन को आगे बढ़ाने के लिये अनुमति देनी पड़ी । इसका श्रेय केन्द्र के सदस्य सचिव प्रो. ज्योतीन्द्र जैन एवं सम्प्रति कलानिधि विभाग के अध्यक्ष डॉ. रमेशचन्द्र गौड़ को जाता है । कुछ ही माह में इसकी समस्त योजनायें सुचारु रूप से चलने लगी । इस तरह से १९५० के बाद का भारत पाण्डुलिपियों के साथ एक नवीन बौद्धिक चेतना का सूत्रपात करता है जिसकी झलक हम निम्रलिखित सूचियों के माध्यम से वर्षक्रम में देख सकते हैं : १९५१-१९५७ : त्रावणकोर विश्वविद्यालय से त्रिवेन्द्रम् मलयालम ग्रन्थमाला संख्या-७७ में मलयालम भाषा की पाण्डुलिपियों की एक सूची पी. के नारायण पिल्लै ने सम्पादित की जिसमें ४३७४ पाण्डुलिपियों की सूची है। जब त्रावणकोर विश्वविद्यालय का नामकरण केरल विश्वविद्यालय हुआ तब १९५७ में यूनिवर्सिटी मैनिस्क्रिप्ट. लाइब्रेरी, त्रिवेन्द्रम की पाण्डुलिपियों का विवरण केरल विश्वविद्यालयः-संस्कृत ग्रन्थसूची शीर्षक से त्रिवेन्द्रम् संस्कृत ग्रन्थमाला संख्या-१८६ में एक भाग प्रकाशित हुआ। उस समय इसकी २८००० हजार पाण्डुलिपियों में से केवल ६०७९ पाण्डुलिपियों की तालिका क्रम में विवरणात्मक सूची प्रकाशित हुई । १९५१ : १९५१, १९५८ एवं १९६३ में क्रमशः १८१, २५१ एवं २५१ पाण्डुलिपियों की विस्तृत विवरणात्मक सूची विश्वभारती गवेषणा ग्रन्थमाला के अन्तर्गत शान्ति निकेतन प्रेस, शान्ति निकेतन से प्रकाशित हुई। इसके प्रथम खण्ड पुंथी परिचय खण्ड-१ का सम्पादन पञ्चानन मण्डल ने किया था एवं इसका प्रकाशन विश्वभारती ग्रन्थालय कलिकाता से हुआ । दूसरे एवं तीसरे भाग का संकलन/सम्पादन श्री विद्युतरञ्जन बसु एवं श्री पुलिन बिहारी सेन ने किया था। १९५२-१९९७ : पाण्डुलिपियों का शासकीय संग्रह जो भण्डारकर ओरियण्टल रिसर्च इन्स्टीट्यूट, पुणे में था उसकी एक सूची भाग-१८, खण्ड-एक के अन्तर्गत वहीं से प्रकाशित हुई जिसमें ३०५ पाण्डुलिपियों का विवरण है जो श्वेताम्बर एवं दिगम्बर सम्प्रदाय के दार्शनिक मतों में १९५४ में भाग-१२, पार्ट-५ जिसमें दस प्रकार की सूचियाँ हैं जो ग्रन्थकार, ग्रन्थ आदि के अनुसार दी गई हैं। यह सभी जैन साहित्य एवं दर्शन से सम्बन्धित हैं । पुनः १९५७ में भाग-११, खण्ड-एक का प्रकाशन हुआ । इसमें भी जैन साहित्य एवं दर्शन से सम्बन्धित हैं। पुन: १९५७ में भाग-११, खण्ड-एक का प्रकाशन हुआ। इसमें भी जैन साहित्य एवं दर्शन से सम्बन्धित ३५४ पाण्डुलिपियों का विवरण है। इसी का द्वितीय Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520786
Book TitleSambodhi 2013 Vol 36
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2013
Total Pages328
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size7 MB
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