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________________ Vol. XXXVI, 2013 पउमचरियं : एक सर्वेक्षण भी प्रकाशन हो चुका है। हेमचन्द्र सामान्यतया तो विमलसूरि की रामकथा का ही अनुसरण करतें हैं, किन्तु उन्होंने सीता का वनवास का कारण, सीता के द्वारा रावण का चित्र बनाना बताया है । यद्यपि उन्होंने इस प्रसंग के शेष सारे कथानक में पउमचरियं का ही अनुसरण किया है, फिर भी सौतियाडाह कारण राम की अन्य पत्नियों ने सीता से रावण का चित्र बनवाकर, उसके सम्बन्ध में लोकापवाद प्रसारित किया, ऐसा मनोवौज्ञानिक आधार पर प्रस्तुत कर दिया है। इस प्रसंग में हेमचन्द्र, भद्रेश्वरसूरि की कहावली का अनुसरण करते हैं और इस प्रसंग में धोबी के लोकापवाद को छोड देते है । चौदहवीं शताब्दी में धनेश्वर ने शत्रुंजयमाहात्म्य में भी रामकथा का विवरण दिया है । सोलहवीं शताब्दी में देवविजयगणी ने रामचरित्र पर संस्कृत में एक स्वतन्त्र ग्रन्थ लिखा है । इसी प्रकार मेघविजय ( १७वीं शताब्दी) ने लघुत्रिषष्टि ने भी रामकथा का संक्षिप्त विवरण दिया है । यद्यपि इन ग्रन्थों की अनुपलब्धता के कारण इनका विमलसूरि से कितना साम्य और वैषम्य है, यह बता पाना मेरे लिए सम्भव नहीं है । पउमचरियं की भाषा एवं छंद योजना सामान्यतया ‘पउमचरियं' प्राकृत भाषा में रचित काव्य ग्रन्थ है, फिर भी इसकी प्राकृत मागधी, अर्धमागधी, शौरसेनी, पैशाची और महाराष्ट्री प्राकृतों में कौन सी प्राकृत है, यह एक विचारणीय प्रश्न है । यह तो स्पष्ट है कि इसका वर्तमान संस्करण मागधी, अर्धमागधी और शौरसेनी प्राकृतों की अपेक्षा महाराष्ट्री प्राकृत से अधिक नैकट्य रखता है, फिर भी इसे परवर्ती महाराष्ट्री प्राकृत से अलग रखना होगा । इस सम्बन्ध में प्रो. व्ही. एम. कुलकर्णी ने पउमचरियं की अपनी अंग्रेजी प्रस्तावना में अतिविस्तार से एवं प्रमाणों सहित चर्चा की है। उसका सार मात्र इतना ही है कि पउमचरियं की भाषा परवर्ती महाराष्ट्री प्राकृत न होकर प्राचीन महाराष्ट्री प्राकृत का अनुसरण करती है, अतः उसका नैकट्य आगमिक अर्धमागधी से भी देखा जाता है । लिखते हैं कि “Paumachariya, which represents an archaic form of Jain Maharastri " पउमचरियं की भाषा की प्राचीनता इससे भी स्पष्ट हो जाती है कि उसमे प्रायः • गाथा (आर्या) छंद की प्रमुखता है, जो एक प्राचीन और सरलतम छंद योजना है । गाथा या आर्या छंद की प्रमुखता होते हुए भी पउमचरियं में स्कन्धक, इन्द्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, उपजाति आदि अनेक छन्दों के प्रयोग भी मिलते हैं, फिर भी ये गाथा/आर्या छंद की अपेक्षा अति अल्प मात्रा में प्रयुक्त हुए हैं। मेरी दृष्टि में इसकी भाषा और छन्द योजना का नैकट्य आगमिक व्याख्या साहित्य में नियुक्ति साहित्य से अधिक है। इसकी भाषा और छन्द योजना से यह सिद्ध होता है कि इसका रचनाकाल दूसरी-तीसरी शती से परवर्ती नहीं है । पउमचरियं का रचनाकाल पउमचरियं में विमलसूरि ने इसके रचनाकाल का भी स्पष्ट निर्देश किया है - Jain Education International पंचेव य वास सया दुसमाए तीस वरिस संजुत्ता । वीर सिद्धिमुवगए तओ निबद्धं इमं चरियं ॥ 141 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520786
Book TitleSambodhi 2013 Vol 36
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2013
Total Pages328
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size7 MB
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