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________________ Vol. XXXV, 2012 परमसुख की साधनाः विपश्यना : कन्हैयालालजी लोढ़ा 189 एवं परिवर्तनशील होने से उनकी अनात्मता और क्षणिकता का बोध हो जाता है और इससे उनके प्रति रागभाव या ममता समाप्त हो जाती है । विपश्यना की साधना में वेदना-विपश्यना के पश्चात् चित्त-विपश्यना का क्रम आता है। इसमें व्यक्ति अपने ही चित्त की वृत्तियों को देखता है, चित्तवृत्तियों के प्रति सजगता होने से मन के भीतरी तल पर स्थित राग, द्वेष और मोह की ग्रन्थियाँ खुलने लगती है। इनके प्रति सजगता का भाव एक ओर नवीन ग्रन्थियों के निर्माण को रोकता है तो दूसरी ओर पूर्व बद्ध ग्रन्थियों के खुलने से राग-द्वेष जन्य विकार दूर होने लगते हैं और व्यक्ति निर्ग्रन्थ अवस्था को प्राप्त होता है । अन्त में धर्म-विपश्यना का क्रम आता है, इसमें संसार की वस्तुओं के क्षणिक और अनात्म स्वरूप का बोध हो जाता है । यहा धर्म-विपश्यना का मतलब वस्तु स्वरूप का यथार्थ ज्ञान भी है। इससे नयी कामनाओं का जन्म भी नहीं होता है, फलतः राग-द्वेष की ग्रन्थियाँ समाप्त हो जाती है । वीतराग और वीत-तृष्ण अवस्था का प्रकटण होता है । अन्य दर्शनों की भाषा में कहे तो यह कैवल्य की प्राप्ति और उसी में रमण करने की स्थिति है। इस विपश्यना की साधना में करणीय कुछ भी नहीं होता है, केवल अपने को साक्षीभाव या ज्ञाता-दष्टा भाव में स्थित रखना पड़ता है। आत्म सजगता की यह दशा व्यक्ति के विकार विमुक्ति की दशा है । ऐसा साधक जब तक संसार में रहता है, तब तक देहातीत होकर जीता है और शरीर के छूटने पर निर्वाण या मोक्ष को प्राप्त होता है, उसका संसार में पुनरागमन सम्भव नहीं होता, क्योंकि उसमें भोगकांक्षा या रागद्वेष के तत्त्व ही नहीं होते हैं । सामान्य रूप से कहे तो विपश्यना की साधना राग-द्वेष की ग्रन्थियों को खोलने की और चित्त-विकारों को दूर करने की साधना है, जो व्यक्ति को परमसुख की प्राप्ति में साधनभूत होती है । पं. कन्हैयालालजी लोढा ने परमसुख विपश्यना नामक प्रस्तुत कृति में विपश्यना के सम्यक् स्वरूप को अनुभव के आधार पर स्पष्ट किया है, यह केवल शाब्दिक विमर्श नहीं है, एक स्वानुभूत तथ्य है। ग्रंथनाम : परमसुख की साधना : विपश्यना लेखक : पं. कन्हैयालालजी लोढा पृष्ठ : १५० + १२ प्रकाश वर्ष : २०११ मूल्य : रु १५०/ प्रकाशक : प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर (राजस्थान) 000
SR No.520785
Book TitleSambodhi 2012 Vol 35
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJ B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2012
Total Pages224
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size37 MB
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