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________________ संस्कृत भाषा एवं साहित्य के क्षेत्र में जैन श्रमण परम्परा का अवदान सागरमल जैन भारतीय संस्कृति की दो शाखाएं हैं - १. श्रमण और २. वैदिक । श्रमणधारा की भी अनेक परम्पराएँ रही हैं - उनमें जैन, बौद्ध, सांख्य, आजीवक एवं चार्वाक प्रमुख धाराएँ है। जहाँ तक इन श्रमण धाराओं के भारतीय संस्कृत साहित्य को अवदान का प्रश्न है, उसमें आजीवक धारा का कोई भी साहित्य आज उपलब्ध नहीं है। इसी प्रकार चार्वाक परम्परा का भी एक मात्र प्राप्त ग्रन्थ तत्त्वोपप्लवसिंह माना जाता है, जो संस्कृत भाषा में लिखित है और मूलतः न्यायशास्त्र का ग्रन्थ है, इसमें भी विविध प्रमाणों और उन पर आधारित मान्यताओं का खण्डन ही मिलता है । श्रमण धारा के अनेक विद्वानों की यह मान्यताओं का खण्डन ही मिलता है। श्रमण धारा के अनेक विद्वानों की यह मान्यता रही है कि सांख्य और योग परम्परा भी अवैदिक है और श्रमण धारा की ही निकटवर्ती है। इनका सभी प्राचीन साहित्य संस्कृत भाषा में ही उपलब्ध है, यथा सांख्यसूत्र, योगसूत्र, सांख्यकारिका आदि और उन पर लिखित अनेक वृत्तिया एवं टीकाएं । सांख्य और योग परम्परा श्रमण धारा का अंग है या नही है यह एक विवादास्पद प्रश्न है - मैं यहाँ इस पर कोई चर्चा न करते हुए मूलतः श्रमण धारा के दो अंगों जैन और बौद्ध धारा के सन्दर्भ में ही चर्चा करुगा । बौद्ध धर्म की हीनयान शाखा के मूलग्रन्थ, जो त्रिपिटक साहित्य के रूप मे जाने जाते हैं, वे मूलत: पाली भाषा में उपलब्ध हैं। प्राकृत भाषा के विभिन्न रूपो में पाली एक ऐसी भाषा हे जिसका अन्य प्राकृत भाषाओं की अपेक्षा संस्कृत से अधिक नैकट्य है । कुछ विद्वानों की मान्यता यह भी है कि 'पाली' मूलतः मागधी है, फिर भी इसकी अशोक के पाली अभिलेखो की अपेक्षा भी संस्कृत से अधिक निकटता देखी जाती है । बौद्ध परम्परा में लगभग ५ वी शती से संस्कृत भाषा का प्रयोग प्रारम्भ हुआ । उसके पूर्व का समग्र बौद्ध साहित्य मागधी में ही था और मागधी का संस्कार करके ही पाली भाषा बनी है। उसका यह संस्कार लौकिक संस्कृत के सहारे हुआ अतः पालि अन्य प्राकृतों की अपेक्षा संस्कृत के अधिक निकट है । न केवल बौद्ध परम्परा की हीनयान शाखा के मूल ग्रन्थ पाली भाषा में पाए जाते है, अपितु उन पर लिखी गई अट्टकथाएँ अर्थात टीकाएँ भी पाली में ही मिलती है, न केवल इतना अपितु पाली भाषा का व्याकरण भी पाली में ही है। किन्तु यहाँ यह जान लेना आवश्यक है कि बौद्ध परम्परा में हीनयान शाखा या थेरवादी शाखा का बल प्रारम्भ में पाली भाषा पर ही रहा था,
SR No.520785
Book TitleSambodhi 2012 Vol 35
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJ B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2012
Total Pages224
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size37 MB
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