SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 119
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Vol. XXXII, 2009 पथ प्रदर्शक-महाराजा सूरजमल 113 भोलानाथ - भोलानाथ कवि जयपुर के कान्यकुब्ज थे ये पहले राजा सूरजमल के दरबार में थे। माधोसिंह महाराजा के समय में जयपुर आये इन्होंने भी ब्रजभाषा में लगभग ११ ग्रन्थ लिखे व अनुवाद किये ।३५ कृष्ण कवि - मथुरा के निवासी और राजा सूरजमल के आश्रित रहे। बिहारी सतसई की टीका : मल्लं के हेतु लिखित (मल्ल से तात्पर्य महाराजा सूरजमल से है । गोविन्द विलास : रीति काव्य का ग्रन्थ है । इस प्रकार कई ग्रन्थों के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि राजा सूरजमल का राजधर्म अति उदार तथा शासन में धर्म निरपेक्षता धार्मिक सह अस्तित्व व्याप्त था। राज सेवाओं में जातिगत सम्प्रदायगत भेदभाव नहीं था और अनेक विश्वास पात्र सेवक थे इस प्रकार वह भारतीय, हिन्दू-मुस्लिम शासकों से अधिक उदार थे। उन्हें 'ब्रजेन्द्र' कहलाने का गौरव प्राप्त था । अतः कृष्ण की लीलाओं से सम्बन्धित विभिन्न प्रकार के काव्यों की रचना हुई। साहित्य सेवी आचार्य सोमनाथ, सूदन, अखैराम, मोतीराम, रसआनन्द, नवीन, बलदेव, मुहम्मद बख्श 'आसोब' सैयद नूरूद्दीन हसन आदि ने उनके दरबारमें रहकर सेवाएं दी। तथा धन व धरती प्राप्त की थी। राजा सूरजमल का राज्य जनसभा के परामर्श व राष्ट्रहित भावनाओं से निहित राज्य था जिसमें उन्होंने सामाजिक एकता, आर्थिक विकास, औद्योगिक व सांस्कृतिक प्रगति में अतिरुचि ली थी। अनेक हिन्दू धार्मिक, वैधिक तथा दार्शनिक ग्रन्थ, पौराणिक आख्यान, नाटक या ख्यालों का सरस व सरल ब्रजभाषा से अनुवाद किया जिससे ब्रजभाषा साहित्य में अति समृद्धि हुयी थी। परन्तु अव्यवस्थित अवस्था समाज के कुछ लोगों ने बना दी जिसके तहत बहुत सारा साहित्य, सुन्दर हस्तलिखित साहित्य समुद्रपार यूरोप और अमेरिका भजन लाल बोड़ी वाला एवं अन्य व्यक्ति द्वारा अपनी जीविकोपार्जन के लिए भेजा जाता रहा ।३६ सुचारु राज्य व्यवस्था एवं निर्माण कार्य - कवि उदयराम द्वारा सं. १८४५ में रचित 'सुजान संवत समै' नामक ग्रन्थ में विशाल सेना का वर्णन है। जिसमें ६० हाथी, ५०० घोड़े, १५०० अश्वारोही, २५००० पैदल तथा ३०० तोपों की जानकारी मिलती है । इसके अतिरिक्त नागा साधुओं को युद्ध की शिक्षा देकर सैनिक टुकड़ी भी संगठित की जाती थी जिसे 'रामदल' सम्बोधित किया गया है। राजा सूरजमल का गोवर्धन में अधिक निवास रहता था, अतः इस स्थान के समीप ही उनकी सेना का युद्धाभ्यास भी चलता रहता था । जाटों के विशाल सेना शिवर के लिए सदैव जल से भरपूर एक अगाध जलाशय की तथा युद्धाभ्यास के लिए एकांत वन्य क्षेत्र की अत्यन्त आवश्यकता थी। उस लक्ष्य को दृष्टि में रखकर ही राजा सूरजमल ने इस सरोवर के निर्माण में और उसके निकटवर्ती वन्य प्रदेश के संरक्षण में अपार द्रव्य लगाया था ।३७ महाराजा बदनसिंह तथा राजा सूरजमल की ललित कला, शिल्प कला व स्थापत्य कला के प्रति अद्भुत अभिरुचि थी । नवीन पक्के दुर्गों, बुर्ज, संयुक्त नगर, प्राचीरों, अति आकर्षक बाग-बगीचों, विशाल प्रासादों, देवालयों, कुण्डों व घाटों के निर्माण के लिए दोनों ने ही लगभग २०,००० शिल्पियों व मजदूरों
SR No.520782
Book TitleSambodhi 2009 Vol 32
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJ B Shah, K M patel
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2009
Total Pages190
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy