SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 106
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 100 विजयपाल शास्त्री SAMBODHI रस-६, ऋषि= ७, रवि (आदित्य)=१२, =१२७६ विक्रम संवत् । इससे स्पष्ट है कि १२७६ विक्रम संवत् में पार्श्वनाथचरितम् की रचना करनेवाले आचार्य माणिक्यचन्द्र द्वारा 'सङ्केत' की रचना इससे १० वर्ष पूर्व १२६६ वि. में करना ही युक्तिसङ्गत प्रतीत होता है, न कि १२१६, १२२४ या १२४६ में। अन्त में लिपिकर के दो पद्य इसके पश्चात् आगे लिखे दो श्लोक मिलते हैं । ये श्लोक ग्रन्थकार के न होकर लिपिकर के हैं, अनवधान से सम्पादकों ने इन्हें ग्रन्थ के साथ लिख दिया है । इस प्रकार का उल्लेख प्रायः सभी लेखक-प्रतिलिपि करनेवाले ग्रन्थ के अन्त में करते थे। अतः हमने इन्हें लिपिकर द्वारा लिखा होने से मूलग्रन्थ से अलग माना है। प्राच्यविद्या संशोधनालय मैसूर द्वारा प्रकाशित 'काव्यप्रकाश-सङ्केत' के द्वितीय सम्पुट के अन्त में इन दो श्लोकों के बारे में सम्पादक ने यह पादटिप्पणी दी है- 'अदृष्टे' त्यारभ्य 'भवतु लोकः' इत्यन्तं ग पुस्तके नास्ति । इससे भी स्पष्ट है कि यह अंश मूल पुस्तक का न होकर लिपिकर द्वारा जोड़ा गया है । इस पर भी उक्त संस्करण में सम्पादकने इन दो श्लोकों को मूलग्रन्थ के साथ ही प्रकाशित किया है। हमने तो वस्तुस्थिति को ध्यान में रखते हुए इन्हें-'लिपिकरस्य निवेदना' के रूप में मूलग्रन्थ से अलग माना है। (लिपिकरस्य निवेदना) अष्टदोषात स्मतिविभ्रमाच्च यदर्थहीनं लिखितं मयाऽत्र । तत्सर्वमार्यैः परिशोधनीयं प्रायेण मुह्यन्ति हि ये लिखन्ति ॥ भाग्यदोष या स्मृति के विपर्यास से मैंने यहाँ जो कुछ अर्थहीन लिख दिया है, उसे आर्यजन शुद्ध कर लें, क्योंकि लिखनेवाले (लिपिकर) लिखते समय प्रायः भ्रमग्रस्त हो जाते हैं । शुभमस्तु सर्वजगतां परहितनिरता भवन्तु भूतगणाः । दोषाः प्रयान्तु नाशं सर्वत्र सुखी भवतु लोकः ॥ सम्पूर्ण जगत् का शुभ हो, भूतगण परहित-निरत होवें । दोष नष्ट हो जावें तथा लोक सर्वत्र सुखी होवे। प्रायः सभी पुराने लेखक (प्रतिलिपि करनेवाले) ग्रन्थ-समाप्ति के अवसर पर उक्त प्रकार से अपनी प्रतिलिपि के शोधन हेतु निवेदन करते हैं एवं सबके प्रति शुभकामनाएँ करते हैं। सन्दर्भ : १. भट्ट सोमेश्वर द्वारा रचित काव्यादर्श 'सङ्केत' का रसिकलाल छोटालाल परीख द्वारा सम्पादित संस्करण दो भागों में राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान जोधपुर से १९५९ ई. में प्रकाशित हुआ था । काव्यालङ्कारसूत्रवृत्ति- ३.१.१०; ३. 'श्लिष्टमस्पृष्टशैथिल्यम्' – काव्यादर्श १.४३; ४. काव्यालङ्कारसूत्रवृत्ति - ३.१.२२;
SR No.520782
Book TitleSambodhi 2009 Vol 32
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJ B Shah, K M patel
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2009
Total Pages190
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy