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विभूति वि० भट्ट
SAMBODHI
२६. भोज०सां०, उपर्युक्त, सौराष्ट्र के थान (स्थान) में आज भी उस भव्य पूर्व सूर्यमंदिर के कुछ अवशेष विद्यमान है
। (पृ० १८०)। यही मूलस्थान-वैद्यनाथ का भव्य प्रासाद होगा जिसका प्रासाद और प्राकार का कीसलदेवने जीर्णोद्धार
करवाया हो ऐसा पूर्वापर श्लोकों के संदर्भ से लगता है। २७. वैद्यनाथ प्रासाद जीर्णोद्धार प्रशस्ति आज भी डभोई (डी० वडोदरा) के हिरा भागोल के दरवाजे के अंदरुनी भाग में
खण्डित, जीर्ण और दुर्वाच्च स्थिति में है। उसके सामने वस्तुपालने जैन प्रासाद बनवाया था। उसकी प्रशस्ति भी दर्भावती प्रशस्ति से प्रसिद्ध थी। वस्तुपालका दर्भावती का सत्कार्य प्राय: सर्व जैन कवियों ने वस्तुपाल की प्रशस्तियो में उल्लेख किया है। श्री जिनहर्षगणि, 'वस्तुपालचरित' में इस की प्रशस्ति के श्लोकों के साथ इस वैद्यनाथ प्रासाद
के कुछ श्लोक (प्रस्ताव ३, श्लो० ३६२-३७९) भी मिलते हैं । भो० ज० सां०, उपर्युक्त, पृ० १८०, १८४, १८६ २८. Indian History & Culture Society के National Seminar, 19-22, Nov. 2003, वेंकटेश्वर युनि०,
तिरूपति में पढ़ा गया लेख ।