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________________ 242 कृपाशङ्कर शर्मा SAMBODHI पर ग्रन्थ का नामसंस्कार आदि की चर्चा की। डॉ० एस० जगन्नाथ ने पुनः तृतीय एवं चतुर्थ कालांश में प्रतिभागियों से श्यामभद्र पर संस्कृत पद्यों का ग्रन्थलिपि में अभ्यास कराया। २९ मई, २००७ : डॉ० एस० जगन्नाथ ने ग्रन्थलिपि में मुद्रित "हरिस्तुति व्याख्या" ग्रन्थ का पठनाभ्यास कार्यशाला के समस्त प्रतिभागियों को कराया । डॉ० जे० बी० शाह ने "ग्रन्थ लेखनकला एवं प्रकार" विषय पर केन्द्रित व्याख्यान में ग्रन्थ लेखन में प्रमुख पदार्थ-ताडपत्र, भूर्जपत्र, ताम्रपत्र, कागज, शिलापट्ट, मसि (स्याही) आदि पर चर्चा की। पालीभाषा में प्राप्त बौद्ध आगमों को शिलाखण्ड पर उत्कीर्ण कर मन्दिर की मूर्तियों पर प्रतिष्ठापित होने का जिक्र भी किया। आपने बताया की आज भी नेपाल में कागज निर्माण की प्रक्रिया पूर्ववत है जो पारदर्शी होता है । गुजरात विद्यापीठ की स्थापना के समय राष्ट्रपिता गांधीजी ने पुरातत्त्व विभाग की स्थापना भी की थी जिसका उद्देश्य दुर्लभ ग्रन्थों का सम्पादन, प्रकाशन, अनुवाद आदि था । डॉ० शाह ने ग्रन्थों के प्रकार में शूड, पंचपाठ, त्रिपाठ, द्विपाठ आदि हस्तप्रत का साक्षात्कार स्लाइड्स के माध्यम से प्रतिभागियों को कराया। आपने सम्पादन के लिए भाषा और लिपि दोनों का ज्ञान अत्यावश्यक बताया । ३० मई, २००७ : ___ डॉ० कृपाशंकर शर्मा गुरुकुलम् अध्येता, राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन, एल०डी०इन्स्टिट्यूट, अहमदाबाद ने "शारदालिपि के जन्मस्थान" के विषय में संक्षिप्त में चर्चा की जिसमें कल्हण और शारदास्तोत्र में शारदालिपि लेखन से पूर्व क्षेत्र की अधिष्ठातृदेवी शारदा को प्रणाम अर्पित कर अपने गुरु प्रो० त्रिलोकनाथ गंजू को ध्यानस्थ कर वर्णविन्यास प्रतिभागियों को बताया। डॉ० एस० जगन्नाथ ने हरिस्तुति व्याख्या का वाचन प्रतिभागियों को कराया । डॉ० जे० बी० शाह ने "डेट ऑफ मेन्युस्क्रिप्ट" विषय पर अपना वक्तव्य दिया। जिसमें विविध ग्रन्थों के उद्धरणों से लेकर ग्रन्थ का काल निर्धारण किस प्रकार किया जाता है उसे व्याख्यायित किया। कतिपय ग्रन्थों की पुष्पिकाओं से प्राप्त सामग्री प्रतिभागियों को बोधनार्थ बतायी । डॉ० शर्मा का परिचय कार्यक्रम के संयोजक प्रो० कानजीभाई पटेल ने आर्शीवादात्मक रूप में दिया । उस अवसर पर संस्था के नियामक डॉ० जे० बी० शाह भी उपस्थित थे । ३१ मई, २००७ : प्रथमसत्र के शुभारम्भ में डॉ० कृपाशङ्कर शर्मा ने शारदालिपि के वर्गों का पुनः अध्यापन अभ्यास कराते हुए 'आ'कार मात्रा से 'ऊ' कार मात्रा पर्यन्त वर्गों में प्रयोग कर बताया । डॉ० एस० जगन्नाथ ने ग्रन्थ लिपि के पठनाभ्यास का क्रम पूर्ववत जारी रखा । डॉ० प्रीति पञ्चोली ने देवनागरी के लिप्यन्तरण का प्रयोग प्रतिभागियों से कराया । चतुर्थ कालांश में पुन: डॉ० जगन्नाथ ने ग्रन्थलिपि में उपलब्ध वाल्मीकि रामायण के हस्तप्रत का पठनभ्यास करवाया तथा उपलब्ध होने वाले वर्गों के परिवर्तन परिवर्धनों का साक्षात्कार कराया ।
SR No.520780
Book TitleSambodhi 2006 Vol 30
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJ B Shah, N M Kansara
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2006
Total Pages256
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size23 MB
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