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________________ Vol. xxx, 2006 पाण्डुलिपियों और लिपिविज्ञान की अग्रीम कार्यशाला का अहेवाल 239 पुरावशेषों के आधार पर ऐतिहासिकता, कलात्मकता, सांस्कृतिक महत्ता आदि पर प्रकाश डाला । आपने वडनगर में प्रचलित मुद्रा, हस्तिदन्त के अलंकरण, पाषाण टेराकोट की प्राचीन बौद्ध, गणेश, जैन आदि मूर्तियों के अवशेष प्रस्तुत किये । और अनुमानतः उनका कालनिर्धारण भी किया । कतिपय मुद्राओं पर ब्राह्मीलिपि में उत्कीर्ण तथ्यों पर भी चर्चा की । अत: आपके अनुसन्धान के मुताबिक गुजरात का वडनगर ग्राम पुरातनकाल में समग्र वैभवसम्पन्न देश रहा होगा जो कला, संस्कृति और इतिहास के अध्येता के लिए अनुसन्धेय बना हुआ है। अतिथि स्वागत परिचय डॉ० जे०बी० शाह ने दिया तथा प्रो० रावत के समग्र अनुसन्धान मार्ग को उद्घाटित किया। २० मई, २००७ : श्री विस्मय एच० रावल (अहमदाबाद) ने “Integrated Pest Management' विषय पर व्याख्यान में हस्तप्रतों में प्राप्त संरक्षण की आवश्यकताओं पर प्रकाश डाला और कीटदंष्ट्र हस्तप्रतों को किस प्रकार पहचाना जाना चाहिए कि किस कीडे के द्वारा खाई गई है उसका निर्धारण व उसका पारम्परिक और वैज्ञानिक तकनीक से किस प्रकार संरक्षण के उपचार करना चाहिए । आपने सरस्वतीमहल लायब्रेरी के प्रयुक्त पारम्परिक भारतीय पद्धति से संरक्षण के पदार्थों की चर्चा की। ओरिएन्टल इन्स्टिट्यूट, बडौदा के निदेशक डॉ० वाडेकर ने 'शोध के प्रकार और प्रक्रिया' विषय पर चर्चा की। जिसमें हस्तप्रत के प्रकार और उसके सम्पादन के विविध चरणों पर प्रकाश डाला । मैसूर से पधारे संस्कृत विद्वान डॉ० एस० जगन्नाथ ने ग्रन्थलिपि के परिपत्र और भारतीय तथा भारतेतर लिपियों के प्रवाह की संक्षेप में चर्चा की और ग्रन्थलिपि के विकास क्रम के प्रवर्तन पर दृष्टि डाली तथा ग्रन्थलिपि का वर्ण विन्यास आरम्भ किया। डॉ० जगन्नाथ ने अपना अध्यापन संस्कृत भाषा के माध्यम से कराया । वक्ता परिचय व स्वागत डॉ० जे० बी० शाह ने किया और वक्ता श्री जगन्नाथ जी की अनुसन्धानयात्रा को प्रकाशित किया । २१ मई, २००७ : श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा के हस्तप्रत भण्डार एवं संग्रहालय का अवलोकन सभी प्रतिभागियों ने किया तथा आवश्यक और महत्त्वपूर्ण जानकारी हाँसिल की। २२ मई, २००७ : पाण्डुलिपिविज्ञान एवं पुरालिपिशास्त्र कार्यशाला के वक्ता के रूप में डॉ० एस० जगन्नाथ ने ग्रन्थलिपि के वर्ण विन्यास पद्धति का अभ्यास प्रतिभागियों को कराया तथा आपने ग्रन्थलिपि और देवनागरी लिपि के वर्णविन्यास की साम्यता को भी उद्घाटित किया । डॉ० जे० बी० शाह (अहमदाबाद) ने "हस्तप्रत-विज्ञान" विषय से संबद्ध लिपि, लेखनकला, लेखन के साधन तथा लेखन व्यवसाय और हस्तप्रत संग्रह का इतिहास बिन्दु पर केन्द्रित चर्चा में ज्ञान की परम्परा और उसके प्रचार-प्रसार पर प्रकाश डाला । आपने ८ वीं शती का हरिभद्रसूरिकृत धर्मबिन्दु नामक ग्रन्थ में श्रावक
SR No.520780
Book TitleSambodhi 2006 Vol 30
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJ B Shah, N M Kansara
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2006
Total Pages256
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size23 MB
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