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________________ Vol. xxx, 2006 सद्धर्मपुंडरिक और उसकी पाण्डुलिपियाँ 171 इनमें सद्धर्मपुंडरीक का विशिट स्थान है । सद्धर्मपुंडरीकसूत्र महायान संप्रदाय के वैपूल्य सूत्रों में सर्वोत्कृष्ट तथा लोकप्रिय ग्रंथ है । ग्रंथ का नामकरण भी विशेष सार्थक है। पुंडरीक-श्वेतकमल-पवित्रता तथा पूर्णता का प्रतीक माना जाता है। जिस प्रकार मलिन पंकसे उत्पन्न होने पर भी कमल मलिनता से स्पृष्ट नहीं होता, उसी प्रकार बुद्ध जगत में उत्पन्न होने पर भी इसके प्रपंच तथा क्लेश से सर्वथा अस्पृष्ट हैं । चीन तथा जापान के बुद्धों में यह सदासे धार्मिक शिक्षा के लिए प्रधान ग्रंथ माना गया है। खास करके तेन्दइ और निचिरेन संप्रदाय का लोकप्रिय ग्रंथ है और झेन संप्रदाय के मंदिरो में उसका पाठ होता है । नेपाल, मध्य एशिया, गिलगिट आदि स्थानों से प्राप्त हस्तलिखित प्रतियों से यही बात सिद्ध होती है कि वह अत्यधिक लोकप्रिय ग्रंथ रहा है। इसकी बहुतसी हस्तलिखित प्रतिलिपियाँ प्राच्य तथा पाश्चात्य देशों के पुस्तकालयों में संग्रहीत तथा सुरक्षित हैं । नेपाल से प्राप्त हस्तलेख : एशियाटीक सोसायटी, कलकत्ता में नेपाल से प्राप्त तीन हस्तलेख-हस्तप्रत हैं । इनमें से प्रथम हस्तप्रत की सूचना हमे डॉ० राजेन्द्रलाल मित्र द्वारा सम्पादित 'Nepalese Buddhist Literature' में मिलती है। यह हस्तप्रत प्राचीनतम है। दूसरी दो प्रतिलिपियों का उल्लेख डॉ० हरप्रसाद शास्त्री ने अपनी ग्रन्थ सूचि Catalogue of Buddhist Manuscripts में किया है। ये लेख अधिक प्राचीन नहीं है और उनका समय लगभग १७११-१२ ई०स० है । इसके दो और अच्छे और अधिक प्राचीन हस्तलेख केम्ब्रिज विश्वविद्याल के पुस्तकालय में सुरक्षित हैं । इनमें एक का समय ई०स० १०३६-३७ है और दूसरे का ई०स० १०६३-६४ । सद्धर्मपुंडरीक की नेपालीय और अन्य कई प्रतिलिपियों का वर्णन Bendall महाशयने Catalogue of Buddhist manuscript में किया है । नेपालीय और एक लेख बिटिश म्युजियम लन्दन में है, जिसका समय १११२ वीं शताब्दी का है। अन्य एक हस्तलेख रायल एशियाटीक सोसायटी, लंदन के पुस्तकालय में और दो नेशनल पुस्तकालय पेरिस में संग्रहीत हैं । परन्तु ये प्रतिलिपियां विशेष प्राचीन नहीं हैं, १८वीं शताब्दी के बाद की हैं। नेपाल से प्राप्त इन सभी प्रतिलिपियों में मौलिक भिन्नता नहीं है। परन्तु केम्ब्रिज विश्वविद्यालय तथा बिटिश म्युझियम में सुरक्षित लेख अधिक प्राचीन, स्पष्ट तथा प्रामाणिक माने जाते हैं । मध्य एशिया के हस्तलेख : नेपाल से प्राप्त हस्तलेखों के अतिरिक्त मध्य एशिया के पूर्व तुर्किस्तान तथा काश्गर, काश्मीर और गिलगिट में से भी काफी संख्या में हस्तप्रतें प्राप्त हुई हैं। इनका संग्रह स्टेन महाशय, पेट्रोव्हीस्की, ओहानी, काश्मीर के महाराजा हरिसिंह आदि सज्जनों ने किया है। पेट्रोव्हीस्की द्वारा काश्गर से प्राप्त हस्तलेखों की जाँच डॉ० कर्न ने की थी। उन्होंने उनकी
SR No.520780
Book TitleSambodhi 2006 Vol 30
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJ B Shah, N M Kansara
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2006
Total Pages256
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size23 MB
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