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________________ सद्धर्मपुंडरिक और उसकी पाण्डुलिपियाँ कानजीभाई पटेल बौद्ध साहित्य की मुख्य सामग्री प्रधानतः पालि, शुद्ध संस्कृत, मिश्रित संस्कृत, तिब्बती और चीनी भाषा में उपलब्ध है। एक समय था कि जब भारत में पालि, संस्कृत और मिश्रित संस्कृत में बृहद् बौद्ध साहित्य उपलब्ध था और एक समय यह भी आया कि सारा बौद्ध साहित्य भारत से लुप्त हो गया । वर्तमान में कुछ ग्रन्थों को छोड़कर बौद्ध धर्म संबंधी साहित्य भारत की सीमा के बाहर से उपलब्ध हुआ है। पालि साहित्य सिलोन में सुरक्षित रहा था और संस्कृत साहित्य काश्मीर, नेपाल, तिब्बत, मध्य एशिया से प्राप्त हो सका है। बौद्ध धर्म का प्रचार मध्य एशिया, चीन, कोरिया, जपान, तिब्बत और नेपाल में होते होते महत्त्वपूर्ण कार्य उसके साहित्य का निर्माण है । पालि साहित्य में जैसे त्रिपिटक उपरान्त व्यक्ति विशेष की रचनाएँ हैं वैसे संस्कृत साहित्य में भी सांप्रदायिक और वैयक्तिक साहित्य का निर्माण हुआ था । साम्प्रदायिक साहित्य के निर्माण में कोई एक व्यक्ति का नहीं परंतु एक समूह का योगदान था । उसमें सर्वास्तिवादियों के संस्कृत त्रिपिटक का तथा महायानी सूत्रों का समावेश होता है। दूसरे प्रकार का जो साहित्य है वह विशेष व्यक्तियों की अपनी रचनाएँ हैं । संस्कृत साहित्य के निर्माताओं में नागार्जुन, आर्यदेव, असंग, वसुबन्धु, दिङ्गनाग, धर्मकीर्ति, शान्तिदेव, शान्तरक्षित, कमलशील आदि के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं । ____ महायानी संस्कृत साहित्य का विचार करने के पहले यह देख लेना चाहिए कि जो संस्कृत बौद्ध साहित्य उपलब्ध हुआ है, वह संपूर्ण महायानी नहीं है । शुद्ध या मिश्रित संस्कृत में जो स्वतंत्र ग्रंथ या गद्यांश हैं, उनमें से कोई हीनयान से सम्बन्धित हैं तो कोई महायान के अन्तर्गत आते हैं। और विशिष्टता तो यह है कि कुछ संस्कृत ग्रंथ ऐसे हैं जो महायानी होते हुए हीनयान में गिने जाते हैं या हीनयानी होते हुए महायान से प्रभावित हैं । महावस्तु मिश्रित संस्कृत में लिखा हुआ हीनयान के लोकोत्तरवादियों का प्रथम विनय ग्रंथ है। फिर भी उसमें बोधिसत्त्वयान की चर्चा है। वह महायान से प्रभावित है। उससे ठीक उलटी बात ललितविस्तर के बारे में है । मिश्रित संस्कृत में रचित यह नौ वैपुल्यसूत्रों में से एक होते हुए भी सर्वास्तिवादियों का ग्रंथ माना जाता है। अश्वघोष सर्वास्तिवादी थे किन्तु उनका बुद्धचरित महायान प्रभाव से मक्त नहीं है। अवदान साहित्य से भी दोनों का संबंध है। इस तरह हम देख सकते हैं कि कछ संस्कृत ग्रंथ महायानी हैं; कुछ हीनयानी हैं (सर्वास्तिवाद का खंडित संस्कृतत्रिपिटक) और कुछ में दोनों के अंश हैं। विंटरनिट्ज का मानना है कि शुद्ध और मिश्रित संस्कृत साहित्य महायानी है या महायान संप्रदाय
SR No.520780
Book TitleSambodhi 2006 Vol 30
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJ B Shah, N M Kansara
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2006
Total Pages256
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size23 MB
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