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M. A. DHAKY
SAMBODHI
पिक्खिवि ताव बहुत्त ठाम मणि चोज्जु पईसइ,
जं अज्जवि सच्चउरि वीरु लोयणिहि न दीसइ. ॥१३॥ सहस्सेण वि लोयणह तित्थु न होइ नियंतह,
वयणसहस्सेहि गुणनतुट्ट निट्ठियहि थुणंतह; एक्क जीह धणपालु भणइ इक्कु जं मह नियतणु, ___ किं वन्नउ सच्चउरि-वीरु हउं पुणु इक्काणणु... ॥१४॥ रक्खि सामि पसरंतु मोहु नेहुंडुय तोडहि, __ सम्मदंसणि नाणु चरणु भडु कोहु विहाडहि; करि पसाउ सच्चउरि-वीरु जइ तुहु मणि भावइ,
तइ तुटुइ धणपालु जाउ जहि गयउ न आवइ. ॥१५॥ पं० धणपालकृतः श्रीसत्यपुरमंडन-श्रीमहावीरउत्साहः समाप्तः
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