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________________ 48 M. A. DHAKY SAMBODHI महाकवि धनपालकृत सत्यपुरीय-श्रीमहावीर-उत्साह ॥२॥ जिणव जेण दट्ठट्ठ कम्म बलवंता मोडिय, - चउ कसाय पसरंत जेण उम्मूल वितोडियः । तिहुयण-जगडण-मयण-सरहि तणु जासु न भिज्जइ, इयरनरहि सच्चउरि-वीरु सो किम जगडिज्जइ. ॥१॥ वरसुरहि पहरंत खंध माहणसिरि तोडद्दि, __फरसु अत्थि गब्भरु य लेवि तरुवारिहि झोडहि; ते तेरिस पाविट्ठ दुट्ठ आरुटु सुधीरह, नयणिहि पेच्छहि जाव ताव पहरंति न वीरह. भंजेवि णु सिरिमालदेसु अनु अणहिलवाडउं, चड्डावल्लि सोरट्ट भग्गु पुणु देउलवाडउं; सोमेसरु सो तेहि भग्गु जणमणआणंदणु, __ भग्गु न सिरि सच्चउरि वीरु सिद्धत्थह नंदणु. . ||३|| बहुएहि वि तारायणेहि रविपसरु किं भिज्जइ, __बहुएहि वि विसहरेहि मिलि वि किं गुरुडु गिलिज्जइ; बहु कुरंग आरुट्ठ करहि किरि काइ मयंदह, पूणिहि बहुय तुरुक्क कांइ सच्चउरि-जिणिदह. ॥४॥ कसिणाणि णु चिरकालि आसि कुवि जोगनरेसरु, उव्वसियइ सच्चउरि दिट्ठ तहि वीरु जिणेसरु; आरंभिउ आहुट्ठ रंगु चामीयर वरतणु, वरतुरंगदो रहि निमित्तु नरवइहि चलिउ मणु. रायाएसिहि दुट्ठभडिहि जिणु जाव न नामिओं, वद्ध सामि करिवरह खंधि रज्जुहं संदामिओं; कढुंतह तुट्टेवि रज्जु हय गय धरणीयलि, निविडिय जिम परिचत्त रुंड पेच्छंतह परवलि. ॥६॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520778
Book TitleSambodhi 2005 Vol 28
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah, K M Patel
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2005
Total Pages188
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size4 MB
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