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________________ 118 कमलेशकुमार छ. चोकसी SAMBODHI अनुक्तसमुच्चयार्थक मान कर ऐसे प्रयोगों को व्याकरण सम्मत माना जा सकता है, परन्तु पा० परम्परा में ऐसा किसी ने प्रयत्न नहीं किया, यह आश्चर्य की बात है। इस प्रकार “कर्तरि च" | सूत्र की प्रवृत्ति के बारे में पाणिनीय व्याकरण परम्परा में दो मत है । तद्यथा - (१) "कर्तरि च । सूत्र द्वारा किया गया समाप्त का निषेध नित्य है, पुनरपि समास किये हुए जो प्रयोग प्राप्त होते हैं, उन में शेष षष्ठी मानकर या क्वचित् तृजन्त शब्दों में तृन् प्रत्यय की कल्पना करके षष्ठी समास मान लेना चाहिए। (२) "कर्तरि च ।" सूत्र द्वारा किया जाने वाला समाप्त का निषेध अनित्य है। इसलिए क्वचित् षष्ठी समासवाले प्रयोग हों, तो कोई दोष नहीं है। जैसे कि उपर देख चूके, इस "कर्तरि च" सूत्र की प्रवृत्ति के बारे में मतभेद है, वैसे ही इस सूत्र के अर्थ के बारे में भी मतभेद है। कुछ लोग जिनमें काशिकाकार तथा प्रक्रिया कौमुदीकार आदि मुख्य है, इस सूत्र का जो अर्थ करते हैं, उससे भिन्न अर्थ भट्टोजि दीक्षित आदि करते हैं । काशिकाकार आदि "तृजकाभ्यां कर्तरि ।" पा. २.२.१५ सूत्र में से अनुवृत्त होनेवाले "तृजकाभ्याम्" पद के साथ इस सूत्र के "कर्तरि" पद का सम्बन्ध मानते हैं, और सूत्र का अर्थ इस प्रकार से देते हैं : (ए) कर्तरि च यौ तृजको ताभ्यां सह षष्ठी न समस्यते ॥ अर्थात् कर्ता अर्थ में आये हुए जो तृच् और अक प्रत्ययान्त शब्द, उनके साथ षष्ठ्यन्त का समास नहीं होता। ___ इस अर्थ के विपरीत भट्टोजि दीक्षित आदि ने इस सूत्रार्थ में कुछ परिवर्तन किया है। "तृजकाभ्यां कर्तरि ।" (पा. २.२.१५) से अनुवृत्त होनेवाले "तृजकाभ्याम्" पद का इस सूत्र के "कर्तरि" पद के साथ सम्बन्ध न मानकर “षष्ठी ।" (पा. २.२.८) सूत्र से आने वाले “षष्ठी" पद के साथ "कर्तरि" पद का सम्बन्ध बताया है, और "कर्तरि च" सूत्र का अर्थ इस प्रकार किया है : (बी) कर्तरि षष्ठ्या अकेन६ न समासः ॥ अर्थात् कर्ता में आयी हुई षष्ठी का अक-प्रत्ययान्त के साथ समास नहीं होता । सूत्रार्थ में भिन्नता होने से सूत्र के उदाहरणों में भी परिवर्तन देखा जा सकता है । काशिकाकार आदि के बताये हुए सूत्रार्थ के अनुसार इस "कर्तरि च" । सूत्र के उदाहरणों में तृजन्त तथा अकन्त दोनों प्रकार के प्रयोगों का समावेश हो जाता है । जैसे कि - (१) अपां स्रष्टा । (२) पुरां भेत्ता । (३) ओदनस्य भोजकः । इत्यादि । परन्तु भट्टोजि दीक्षित आदि ने जो अर्थ किया है, उसके अनुसार मात्र अक प्रत्ययान्त प्रयोग ही Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520778
Book TitleSambodhi 2005 Vol 28
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah, K M Patel
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2005
Total Pages188
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size4 MB
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