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________________ बौद्ध प्रव्रज्या-उपसम्पदा : ‘एहि भिक्खु' से 'अत्तिचतुत्थकम्म' तक कानजीभाई पटेल भगवान बुद्धने भिक्षुओं को दीक्षा देने का कार्य इसिपत्तन में अपने पुराने ब्राह्मण-साथियों से आरंभ किया और फिर श्रेष्ठिपुत्र यश और उसके मित्रों को केवल 'एहि भिक्खु' शब्दों के उच्चारण द्वारा दीक्षित किया। तीस भद्दिय मित्रों को तथा तीन जटील भाईओं और उनके शिष्यों को तथा सारिपुत्र और मौद्गल्यायन को भी ‘एहि भिक्खु' कह कर ही प्रव्रज्या दी । संघ की स्थापना हुई उसके पहले द्विशरण से ही उपसंपदा हुई । उपासकों के विषय में भी यही बात थी। यश के माता पिताको त्रिशरण से उपासक बनाए (विनयपिटक, महावग्ग - नालंदा, पृ. १६, २१) लेकिन उसके पहले तपुस्स और भल्लिक दोनों ने द्विशरण का स्वीकार किया। (विनयपिटक, महावग्ग - नालंदा, पृ. ६) जब बुद्ध के शिष्यों की संख्या साठ तक पहुँच गई तब उन्होंने उन्हें भिन्न भिन्न दिशाओं में बौद्ध धर्म के उपदेशों का प्रचार करने के लिए भेज दिया - "चरथ भिक्खवे चारिकं बहुजनहिताय बहुजनसुखाय लोकानुकम्पाय अत्थाय हिताय सुखाय देवमनुस्सान" । (विनयपिटक, महावग्ग - नालंदा, पृ. २३) परन्तु उन्हें प्रव्रज्या देने का अधिकार नहीं था । जो भिक्षु बाहर धर्म प्रचार के लिए गए वे बौद्ध धर्म स्वीकार करनेवालों को संघ में प्रविष्ठ करने के लिए बुद्ध के पास लाते थे । इससे उन भिक्षुओं को और नवदीक्षार्थिओं को बडी असुविधा होती थी। इस कारण बुद्ध ने कुछ शर्ते निर्धारित करके भिक्षुओं को प्रव्रज्या-उपसंपदा देने का अधिकार दे दिया । उन शर्तों के अनुसार प्रव्रज्या ग्रहण करने के पहले सिर मुंडवाकर, पीले वस्त्र धारण कर, उपर का वस्त्र एक खंधे पर डालकर प्रव्रज्या देनेवाले भिक्षु को पादवंदना करना था तथा तीन बार त्रिशरण का उच्चारण करना पडता था - "बुद्धं सरणं गच्छामि, धम्म सरणं गच्छामि, संघं सरणं गच्छामि ।" इस तरह त्रिशरण की पद्धति अस्तित्व में आयी (विनयपिटक, महावग्ग - नालंदा, पृ. २४) । राजा बिंबिसार त्रिशरण पद्धति अस्तित्व में आने के बाद उपासक हुआ। उसके पहले यश के माता पिता उपासक बन चुके थे। संघ की उत्पत्ति के साथ बुद्धने कुछ विधान बनाए । बुद्धने प्रव्रज्या देने का अधिकार उपाध्याय को दे दिया था लेकिन एक ब्राह्मण को प्रव्रज्या - उपसंपदा देने का इन्कार करने से बुद्धने प्रव्रज्याउपसंपदा देने का अधिकार उपाध्याय से ले लेकर संघ को दे दिया और उत्तिचतुत्थकम्म अस्तित्व में आया । अत्तिचतुत्थकम्म का मतलब है कि प्रव्रज्या आदि कार्य समस्त संघ ही कर सकता है । ज्ञप्ति, अनुश्रावण और धारणा के माध्यम से प्रव्रज्या-उपसंपदा की विधि अस्तित्व में आई ।
SR No.520777
Book TitleSambodhi 2004 Vol 27
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJ B Shah, N M Kansara
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2004
Total Pages212
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size25 MB
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