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________________ Vol.XXV, 2002 जैन दर्शन में निर्जरा तत्त्व 151 ध्यान मन की एकाग्र अवस्था का नाम 'ध्यान' है। आचार्य हेमचन्द्र ने कहा है कि - अपने विषय में (ध्येय के रूप में) मन का एकाग्र हो जाना ध्यान है।६७ आचार्य भद्रबाहु ने भी कहा है कि - चित्त या मन को किसी भी विषय पर स्थिर करना एकाग्रचित्त करना ध्यान है ।६८ आचार्य सिद्धसेन दिवाकर ने ध्यान की परिभाषा स्पष्ट करते हुए कहा है - शुभैकप्रत्ययो ध्यानम् ।६९ शुभ और पवित्र आलम्बन पर एकाग्र होना ध्यान है। समाधि एवं शान्ति की कामना रखनेवाला आर्त एवं रौद्रध्यान का त्याग करके धर्म और शुक्ल ध्यान का चिन्तन करे। ध्यान में पवित्र विचारों में मन को स्थिर रखा जाता है । आत्मा का आत्मा के द्वारा आत्मा के विषय में सोचना, चिन्तन करना ध्यान है। ध्यान रूपी अग्नि से कर्म रूपी लकड़ी जलकर भस्म हो जाती है और आत्मा शुद्ध-बुद्ध-सिद्ध-निरंजन स्वरूप प्राप्त कर लेता है। उत्तम संहनन वाले का एक विषय में चित्तवृत्ति का रोकना ध्यान है, जो अन्तर्मुहूर्त तक होता है ।७२ तत्त्वार्थ सूत्र में ध्यान चार प्रकार का होता है ।७३ इनमें से आर्त और रौद्र संसार का कारण होने से दुर्ध्यान एवं हेय है तथा दो शुक्ल और धर्म मोक्ष होने के कारण सुध्यान व उपादेय या ग्रहण करने योग्य होते हैं। चारों ध्यान निम्नवत् है१. आर्त ध्यान ३. धर्म ध्यान २. रौद्र ध्यान ४. शुक्ल ध्यान १. आर्तध्यान – अप्रिय वस्तु के प्राप्त होने पर उसके परित्याग के लिए सतत चिन्ता करना प्रथम आर्त ध्यान है । दुःख पड़ने पर उसको दूर करने की सतत चिन्ता करना दूसरा आर्त ध्यान है। प्रिय वस्तु के वियोग हो जाने पर उसे पाने के लिए सतत चिन्ता करना तीसरा आर्त ध्यान है । अप्राप्त वस्तु को पाने के लिए संकल्प या चिन्ता करना चतुर्थ आर्त ध्यान है। आर्त ध्यान अविरत देश, संयत और प्रमत्त संयत इन चार गुणस्थानों में ही सम्भव है । २. रौद्र ध्यान - गलत कार्य से दूर रहना रौद्र ध्यान है। हिंसा, असत्य, चोरी और विषय रक्षण के लिए सतत चिन्ता करना “रौद्र ध्यान" कहा जाता है। यह अविरत और देश विरत में सम्भव है। यह ध्यान भी चार प्रकार का होता है - १. हिंसानुबन्धी ३. स्तेयानुबन्धी २. अनृतानुबन्धी ४. विषयरक्षणानुबन्धी ।७५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520775
Book TitleSambodhi 2002 Vol 25
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah, N M Kansara
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages234
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size5 MB
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