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Vol. XXV, 2002
संस्कृत साहित्य में मानवीय तत्त्व के रूप में अनुक्रोशत्व
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यह धर्म क्या है, उसका स्वरूप क्या है ?
रूप से जहाँ बताया गया है वह है जैनदर्शन | जैनदर्शन ने कहा है कि अहिंसा परमो धर्मः ।
अहिंसा हि परम धर्म है ।
ऐसा क्यूँ कहा है ? मनुष्येतर सृष्टि में तो जीवो जीवस्य भोजनम् वाली बात चलती है । परन्तु केवल मनुष्य में ही अनुक्रोशत्व - परदुःखदुःखिता का एक बीजभूत तत्त्व ऐसा है, जिसके आधार पर अहिंसा रूप धर्म का वटवृक्ष विकसित हो सकता है ॥
'हमारे भारतीय दर्शन में धर्म का स्वरूप प्रबल / उत्कृष्ट
अतः अब विचारणीय है कि यह 'अनुक्रोशत्व' शब्द का अभीष्ट विवक्षितार्थ क्या है । हमारे कोशकार तो इस का " दया, करुणा" जैसे सामान्य अर्थ बताते है । 'अमरकोश' में कहा है : कारुण्यं करुणा घृणा । कृपा दयाऽनुकम्पा स्याद् अनुक्रोशोऽपि ॥' अर्थात् करुणा, घृणा, कृपा, दया, अनुकम्पा एवं अनुक्रोश • ये शब्द एकार्थक हैं । अर्थात् परस्पर पर्य्यायवाची हैं । परन्तु सूक्ष्मेक्षिका से विचार किया जाय तो कोई भी शब्द दूसरे किसी भी शब्द का पर्य्याय नहीं होता है । प्रत्येक शब्द की अपनी अपनी अलग अर्थच्छाया होती है। जैसे कि
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(१) सर्वशक्तिमान् परमात्मा ने जो जल, वायु सूर्यप्रकाशादि को जीवमात्र के लिए सहज सुलभ बनाया है, वह उनकी 'करुणा' कही जाती है। इस जल, वायु इत्यादि के अभाव में प्राणिओं का जीवन सर्वथा असम्भाव्य है। सर्वोपरि ईश्वर की इस कृपा को ही 'करुणा' कहते हैं । (२) परन्तु जब एक सबल जीव दूसरे निर्बल जीव का जीवन नहीं छीनता, एक जीव दूसरे जीव को किसी तरह का आघात नहीं पहुँचाता तो वह ‘दया' हैं। ‘√दय् दानगतिहिंसारक्षणेषु' धातु से 'दया' शब्द बनता है । 'दयते रक्षत्यनया । (३) जब कि 'अनुक्रोश' शब्द अनु + क्रुश आह्वाने रोदने च (भ्वादिगण ) धातु से बनता है । यहाँ " अनुक्रोशति ” का अर्थ होता है : परदुःखदुःखिता । जब एक जीव का दुःख देखकर दूसरा जीव भी रोता है; अर्थात् समदुःख होता है, और परिणाम स्वरूप उसको साहाय्य करने को दौड़ पड़ता है तो वह 'अनुक्रोश' है । संस्कृत काव्यसाहित्य में जो अनुक्रोश शब्द का प्रयोग हुआ है, वह इसी अर्थच्छाया को प्रकट करता है |
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'स्वप्नवासवदत्तम्' नाटक के पूर्वोक्त सन्दर्भों में वासवदत्ता एवं यौगन्धरायण लावाणक के अग्नि में भस्मसात् हो गये हैं - ऐसा सुनकर उदयन भी अग्नि में कूद पड़ने का प्रयास करता है । वह उदयन के चित्त में रहे हुए अनुक्रोशत्व का परिणाम है । यही अनुक्रोशत्व एक अनुपम एवं अनन्य मानवीयतत्त्व है |
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