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संस्कृत साहित्य में मानवीय तत्त्व के रूप में अनुक्रोशत्व
वसन्तकुमार भट्ट
भूमिका :
लीलैकहेतुक परमात्मा ने संसार में नाना प्रकार के प्राणिओं का सर्जन किया है और वह परम करुणा से प्रेरित होकर उसका परिपालन भी कर रहा है। उस प्राणी-समूह में से अन्यतम मानव प्राणी में जो कुछ अनितर साधारण वैशिष्ट्य दिखाई दे रहा है, वह बुद्धिगत, भाषागत एवं सामाजिक भावनागत तो है ही, लेकिन इससे बढ़कर 'अनुक्रोशत्व' नामक जो मानवीयतत्त्व है वह भी एक वैशिष्ट्य के रूप में गणनाह है । संस्कृत काव्यसाहित्य में करुणा, दया, घृणा, अनुकम्पा, सहानुभूति इत्यादि शब्दों से व्यापकरूप से मानवीयतत्त्वों की ओर ध्यान आकृष्ट किया गया है। परन्तु इस सन्दर्भ में, ‘अनुक्रोश' शब्द का जो प्रयोग संस्कृत काव्यसाहित्य में किया गया है वह प्रस्तुत लेख का विषय है ॥
'प्रतिज्ञायौगन्धरायण' नाटक में महाकवि भास ने दामाद की पसंदगी कैसे की जाती है इस सन्दर्भ में महासेन की एक उक्ति रखी है :
राजा - बादरायण । एवमेतत् । अतिलोभाद् वरगुणानाम् अतिस्नेहाच्च वासवदत्तायां न शक्नोमि निश्चय गन्तुम् ।
कुलं तावच्छ्लाघ्यं प्रथममभिकाङ्के हि मनसा ततः सानुक्रोशं मूदुरपि गुणो ह्येष बलवान् । ततो रूपे कान्तिं, न खलु गुणतः, स्त्रीजनभयात्
ततो वीर्योदग्रं, न हि न परिपाल्या युवतयः ॥' * संस्कृत विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित "संस्कृत वाङ्मय में मानवीयतत्त्व" विषयक राष्ट्रिय
परिसंवाद (15-17 Sept. 2000) में प्रस्तुत किया गया लेख ॥
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