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________________ 93 Vol. XXIII, 2000 काव्यशास्त्रीय ग्रन्थों में 'सेतुबन्ध' के कतिपय उद्धरण... भोजदेव श्लेष से युक्त संकीर्णरूपमें उभयभूयिष्ठरूपक का भेद इस पद्य में मानतें हैं। - (पृ. ४२९) रामदास भूपति सिर्फ रूपक का ही निर्देश करतें हैं यथा - इन्द्रधनुरेव सरसं तात्कालिकं नखपदमितिरूपकम् । (पृ. १६) पुरिससरिसं तुह इमं रक्खससरिसं कअं णिसाअरवइणा । कह ता चिंतिज्जंतं महिलासरिसं ण संपडइ मे मरणं ॥ सेतु. ११/१०५ - (स.कं. पृ. ६२८) पुरुषसदृशं तवेदं राक्षससदृशं कृतं निशाचरपतिना । कथं तावच्चिन्तितसुलभं महिलासदृशं न संपद्यते मे मरणम् ॥ यह पद्य भोज ने नायिका के गुणनिरूपण में 'कृतज्ञता' गुण को दिखलाते हुए टंकित किया है। भारतीय विद्या. में चिन्तिअ सुलहं पाठ है, डॉ. बसाक में भी, किन्तु वहीं पर क्रमांक ११/१०३ है। पुलयं जणंति दह कंधरस्स राहवसरा सरीरमि। जणयसुआफंसमहग्धकरयलायड्डिअविमुका ॥ (सेतु. ५/१३) पुलकं जनयन्ति दशकन्धरस्य राघवशराः शरीरे । जनकसुतास्पर्शमहार्घकरतलाकृष्टविमुक्ताः ॥ प्रस्तुत पद्य भोज और नरेन्द्रप्रभसूरि ने उद्धृत किया है। भोज नायक प्रतियोगी में रसामास बतातें हैं। (स.कं. पृ. ५७६, अलं. महो. पृ. २८०) नरेन्द्रप्रभ रसाभास के उदाहरण में उद्धृत करते हैं। रामदास भूपति की टीकायुक्त (भारतीय विद्या.) संपादनमें कथित पद्य नहीं है। श्री हेन्दीक्वी ने भी अंग्रेजी टिप्पण में इसका निर्देश नहीं दिया। किन्तु श्री बसाक संपादित आवृत्ति में यह पद्य है और अज्ञातनामा टीकाकार ने अपनी सेतु. की 'सेतुतत्त्वचन्द्रिका' टीका में इस पद्य का निर्देश साहसाङ्क और कुलनाथ की टीका में नहीं है, ऐसा कहा है। - पद्यमिदं साहसाङ्क - कुलनाथाभ्यां न धृतम् । (पृ. ५८१) 'सेतुचन्द्रिका।' की आवृत्ति में नरेन्द्रप्रभ से पाठान्तर मिलता है ।२० पुहवीअ होहिहि पई बहुपुरिसविसेसचंचला राअसिरी । कह ता महञ्चिअ इमं णीसामण्णं उवडिअं वेहव्वम् ॥ सेतु. ११/७८ - (स.कं. पृ. ६४९) पृथिव्या भविष्यति पतिर्बहुपुरुषविशेषचञ्चला राज्यलक्ष्मीः । कथं तन्ममैवेदं निःसामान्यमुपस्थितं वैधव्यम् ॥
SR No.520773
Book TitleSambodhi 2000 Vol 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah, N M Kansara
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2000
Total Pages157
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size11 MB
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