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" शाकुन्तल" के विदूषक की उक्तियाँ में पाठान्तरों का एक समीक्षात्मक अध्ययन* वसंतकुमार म. भट्ट
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० १ 'अभिज्ञानशाकुन्तल' की अद्यावधि अनेक आवृत्तियाँ प्रकाशित हुई है । जिस में से कतिपय आवृत्तियाँ तो राघवभट्टादि की टीका-टिप्पण के साथ प्रकाशित हुई है। अभी अभी गुजरात विश्वविद्यालय में श्रीमती पूनम पङ्कज रावळ के द्वारा "घनश्यामकृत अभिज्ञानशाकुन्तल-सञ्जीवन-टिप्पण का समीक्षित पाठसम्पादन" (A. D. 1991 ) शीर्षकवाला एक महानिबंध प्रस्तुत हुआ है और Ph.D की उपाधि के लिए स्वीकृत भी हुआ है । प्रोफे. डॉ. श्रीरेवाप्रसाद द्विवेदीजी के द्वारा भी "कालिदासग्रन्थावली" में अभिज्ञानशाकुन्तलम्' की एक समीक्षित आवृत्ति (2) प्रस्तुत हुई है । शाकुन्तल की जो प्रमुख आवृत्तियाँ है और जो प्रकाशित टीकाटिप्पणादि है वह निम्नोक्त है :
१ (क) ŚAKUNTALĀ BY KĀLIDĀSA
(ख) KĀLIDASA'S ŚAKUNTALA
(ग)
(The Deva-nagari Recension of the text) Ed Monier Williams,
Chowkhamba Samskrit Series Office, 3rd edition, Varanasi, 1961
(घ)
(Critical edition of the Bengali Recension)
Ed Pischel Richard, Second edition, Harvard University Press, 1922
ABHIJÑĀNA-ŚAKUNTALA OF KALIDĀSA (The Kashmiri recen
sion)
Ed Belvalkar S K
Sahitya Akademi, New Delhi, 1965
कालिदासग्रन्थावली
सम्पादक : द्विवेदी रेवाप्रसाद
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, (द्वितीयं संस्करणम् वाराणसी, १९८६
२ टीका-टिप्पणादि (प्रकाशित)
(क) अभिज्ञानशकुन्तलम् । ( मैथिलपाठानुगम्)
(शंकर-नरहरिकृत-व्याख्याद्वय समेतम् ) सम्पा. उपाध्याय श्रीरमानाथ शर्मा मिथिलाविद्यापीठ प्रकाशन, दरभंगा, १९५७