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________________ दोहा-उपहार हे मूढ ! देखनारने रमण करवाथी पण सुख नथी थतुं. अहो ! नानकडं मूत्रनुं छिद्र ता य कोने संतापतु नथी ? हे जीव ! विषय-कषायो छोडीने तुं जिनवरखें ध्यान कर. तो क्यांय तने दुःख देखाशे नहीं अने तु अजरामर पद पामीश. विषय-कषाय छोडीने हे मूर्ख ! आत्मामां मन लगाड. (तो) चारे गतिनो नाश करीने अनुपम परमपद पामीश. इन्द्रियोना प्रसरणने निवारवामां ज हे मन ! परमार्थ समज. ज्ञानमय आत्माने छोडीने बाकीना शास्त्रो प्रपंचजाळ छे. १९९ हे जीव ! तु विषयन चिंतन न कर. विषयो सारा नथी. सेवन वखते मीठा लागे छे, पण हे मूढ ! पाछळथी ते दुःख आपे छे. २०० विषय-कषायोमां मोहित थई जे आत्मामा चित्त देतो नथी ते पापकर्मा बांधीने लांबा काळ सुधी संसारमा भ्रमण करे छे. २०१ इन्द्रिय-विषयो छोडीने हे मूर्ख ! मोहनो त्याग कर. प्रतिदिन परमात्मानुं ध्यान कर. तो ए (साचो) उद्यम कहेवाय. २०२ . . श्वास जितनारो, अनिमिष नेत्रवाळो, सघळी क्रिया छोडी दीधेलो - एवी अवस्था पामेलो ते योगी छे. एमां संदेह नथी. २०३ ज्यारे मननो व्यापार तूटी जाय, रागद्वेषनु अस्तित्व नाश पामे अने आत्मा परमात्मामां स्थिर थई जाय त्यारे निर्वाण थाय छे. २०४ हे जीव! तु आत्म-स्वभाव छोडीने विषयोनु सेवन करे छे, तेथी तु अन्य दुर्गतिमा ज जईश -- ए एवो उद्यम छे. २०५ न मंत्र, न तंत्र, न ध्यान, न धारणा के न श्वासोच्छ्वासनु कई काम छे. एम ज मुनि परम सुख पामे छे. आ गरबड कोईने य गमती नथी. २०६.
SR No.520766
Book TitleSambodhi 1989 Vol 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamesh S Betai, Yajneshwar S Shastri
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1989
Total Pages309
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size10 MB
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