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________________ २८ दोहा-उपहार जेनुं चित्त जगतमां पांच रूपोमां, छ रसोमां अने सर्व रागोमां रंगाय नथी -हे जोगी! तेने मित्र बनाव. जेना शरीरमा तप थोडो संग करीने स्थिर थयु के तेवा नरोने पण मरणनो ताप असह्य होय छे. १०२ देह गळी जाय त्यारे बधुं गळी जाय ले - मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, धारणशक्ति अने ध्येय. त्यारे एवा अवसरमां पण हे मूर्ख ! बिरला ज देवनु स्मरण करे छे. १०३ . भोगोथी भागेलु जेनु सुदर मन इच्छाओनी पेली पार स्थिर थयु के ते ज्यां फावे त्यां फरी शकेले. तेने भय नथी, भवभ्रमण नथी. १०४ जीवोनो वध करवाथी नरकगति अने अभयप्रदान करवाथी स्वर्ग - आ बे जोडिया रस्ता दर्शाव्या ले. ज्यां फावे त्यां चालो. १०५ सुख बे दिवसनां छे, फरी दुःखोनी परंपरा. हे हृदय ! हुं तने शीखवू छु - (साचा) रस्ते चित्त लगाड. १०६ हे मूढ ! देहमां आसक्त न थर्बु जोईए, देह आत्मा नथी. देहथी भिन्न एवा ज्ञानमय आत्माने तुं जो.. १०७ जेवू चंडाळनु झुपडूं तेवी अपवित्र(?) काया छे. त्यां ज प्राणपति बसे छे. हे जोगी! त्यां ध्यान कर. १०८ थड छोडीने जे डाळे चडे ते योगाभ्यास केवी रीते करवानो हतो ? हे मूढ ! कात्या विनाना कपासमांथी कपडु केवी रीते वणी शकाय ? १०९ जेना सर्व विकल्पो लूटी गया छे, जे चैतन्य-भावने पाम्यो छे, जे निर्मळ ध्यानमा स्थिर थयो छे, तेनो आत्मा परमात्मानी साथे रमण करे छे, ११० " आज तारे लक्ष आपीने (मनरूपी) करभने जीती लेबो जोईए के जेना पर चडीने परम मुनि सर्व गमनागमन( जन्म-मरण )थी मुक्त बने छे. १११
SR No.520766
Book TitleSambodhi 1989 Vol 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamesh S Betai, Yajneshwar S Shastri
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1989
Total Pages309
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size10 MB
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