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________________ दोहा-उपहार धन अने परिवारनी चितामां तु मुक्ति मेळवी शकतो नथी, तो पण ते ने तेज विचार्या करे छे अने तेमां ज महासुख माने ले. ११ हे जीव ! एने गृहवास न समज, ए तो पापर्नु निवासस्थान छे, यमे गोठवेलो अतूट पाश के. एमां संदेह नथी. हे मूढ ! सघळु बनावटी (क्षणिक) ले ए स्पष्ट छे. तुं खाली फोतरां खांड मा. तरत घर-परिवार छोडी निर्मळ शिवपदमां आसक्ति कर. १३ जेनो निवास (निर्विकल्प समाधिरूप) आकाशमा ले तेनो मोह विलीन थई जाय छे, मन मरी जाय छे, श्वास-निश्वास तूटी जाय ले ने केवळज्ञान प्रगट थाय ले. ( साधु )-वेश तो ग्रहण करे छे पण भोगनो भाव त्यजतो नथी, जेम सापे कांचळी मूकी दीधी पण जे विष छे ते मूकतो नथी. १५ १४ १६ जे मुनि विषयसुख छोडीने फरी तेनी इच्छा करे छे ते केशलुंचननी पीडा अने शरीर सूकावानु दुःख (वधारामां) सहन करीने फरी संसारमा भटके छे. विषयोनां सुखो बे दिवसनां छे, फरी पाछी दुःखोनी परंपरा. ए भूलीने हे जीव ! तुं पोताना खभे (ज) कुहाडी न फेरव. १७ शरीरनुं विलेपन कर, मर्दन कर, संभाळ ले अने अति मीठा आहार दे - दुर्जन पर करेला उपकारनी जेम आ बधु निरर्थक ले. १८ अस्थिर, मलीन अने गुणहीन काया द्वारा स्थिर, निर्मळ अने गुणोना सार रूप क्रिया जो थई शकती होय तो केम न करवी ? १९ विष सारु, विषधर नाग सारो, अग्नि सारो, (अरे ) वनवासनुं सेवन पण सारु. (परंतु) जिनधर्मथी विमुख मिथ्यात्वीनो सहवास नहीं सारो. २० मूळ गुणने ऊखेडी नाखीने उत्तर गुणने जे वळग्या रहे छे ते फलंगचूक्या वांदरानी जेम बहु नीचे पडीने नाश पाम्या समजवा. २१
SR No.520766
Book TitleSambodhi 1989 Vol 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamesh S Betai, Yajneshwar S Shastri
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1989
Total Pages309
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size10 MB
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