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दोहा-पाहुड वेपंथेहि ण गम्मइ बेहसूई ण सिज्जए कथा । बिणि ण हुति अयाणा इंदियसोक्खं च मोक्ग्यं च ॥२१३ उववासह होइ पलेवणा संताविज्जइ देहु । घरु उज्झइ इंदियतणउ मोक्खह कारणु पन ॥२१४ अच्छउ भोयणु ताहं घरि सिद्ध हरेप्पिणु जेन्यु । ताह समउ जय कारियइं ता मेलियइ समन्नु ॥२१५ जइ लद्धउ माणिक्कडउ जोइय पुहवि भगत ।। बंधिज्जइ णियकप्पडइं जोइज्जइ एक्कत ॥२१॥ वादविवादा जे करहिं जाहिं ण फिट्टिय भनि । जे रत्ता गउपावियई (?) ते गुप्पंत भमंनि ॥२१७ कायोऽस्तीत्यर्थमाहारः कायो ज्ञानं समीहते । ज्ञानं कर्मविनाशाय तन्नाशे परमं पदम् ॥२१८ कालहिं पवणहिं रविससिहिं चहु एक्कट्टइं वास्तु । हउं तुहिं पुच्छउं जोइया पहिले कामु विणा ।।२१२ ससि पोख(? स)इ रवि पज्जलइ पवणु हलोले लेइ । सत्त रज्जु तमु पिल्लि करि काम का मिड .. मुखनासिकयोर्मध्ये प्राणान् सञ्चरते सदा । आकाशे चरते नित्यं स जीवो तेन जीवति ।।२२१ आपदा मूर्छितो वारिचुलुकेनापि जीवति । अम्भः कुम्भसहस्राणां गतजीवः करोति किम् ॥२२२
॥ इय दोहा-पाहुडं समत्तं ॥ ॥ श्री ॥