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________________ 22 उन्होंने कुमारपाल को उपदेश देकर विधवा और निस्सन्तान स्त्रियों की सम्पत्ति को राज्यसात् किये जाने की क्रूर प्रथा को सम्पूर्ण राज्य में सदैव के लिए बन्द करवाया और इस माध्यम से न केवल नारी जाति को सम्पत्ति परका अधिकार दिलवाया,13 अपितु उनकी सामाजिक जीवन में प्रतिष्ठा भी की और अनेकानेक विधवाओं को संकटमय जीवन से उबार दिया । अतः हम कह सकते है कि हेमचन्द्र ने नारी को अपनी खोयी हुई प्रतिष्ठा प्रदान की। प्रजारक्षक हेमचन्द -- - हेमचन्द्र की दृष्टि में राजा का सबसे महत्त्वपूर्ण कर्तव्य अपनी प्रजा के सुख-दु:ख का ध्यान रखना है । हेमचन्द्र राजगुरु होकर जनसाधारण के निकट सम्पर्क में थे। एक समय वे अपने किसी अति निर्धन भक्त के यहाँ भिक्षार्थ गये और उसके यहां खे सूखी रोटी और मोटा खुरदुरा कपडा भिक्षा में प्राप्त किया । वही मोटी रोटी खाकर और खुरदरा मोटा वस्त्र धारण कर ही वे राजदरबार पहुचे। कुमारपालने जब उन्हें अन्यमनस्क मोटा कपड़ा पहने दरबार में देखा, तो जिज्ञासा प्रकट की, कि मुझसे क्या कोई गलती हो गई है। हेभचन्द्रने - कहा-"हम तो मुनि हैं, हमारे लिए तो सूखी रोटी और मोटा कपड़ा ही उचित्त है । किंतु जिस राजा के राज्य में प्रजा को इतना कष्टमय जीवन बिताना होता है। वह राजा अपने प्रजाधर्म का पालक तो नहीं कहा जा सकता । ऐसा राजा नरकेसरी होने के स्थान पर नरकेश्वरी ही होता है। एक और अपार स्वर्ण -राशि और दूसरी ओर तन ढकने का कपड़ा और खाने के लिए सूखी रोटी का अभाव यह राजा के लिए उचित नहीं है ।" कहा जाता है कि हेमचन्द्र के इस उपदेश से प्रभावित हो; राजा ने आदेश दिया कि नगर में जो भी - अत्यन्त गरीब लोग हैं उनको राज्य की ओर से वस्त्र और खाध-सामग्री, प्रदान की जाये ।।3 इस प्रकार हम देखते हैं कि हेमचन्द्र यद्यपि स्वय एक मुनि का जीवन जीते थे किन्तु लोकमगल और लोककल्याण के Iलए तथा निर्धन जनता के कष्ट दूर करने के लिए वे सदा * तत्पर रहते थे और इसके लए राजदरबार में भी अपने प्रभाव का प्रयोग करते थे। समाजशास्त्री हेमचन्द्र स्वय मुनि होते हुए भी हेमचन्द्र पारिवारिक एवं सामाजिक जीवनकी सुव्यवस्था के लिए सजग थे। वे एक ऐसे आचार्य थे, जो जनसाधारण के सामाजिक जीवनके उत्थान को भी धर्माचार्य का आवश्यक कर्तव्य मानते थे। उनकी दृष्टि में धार्मिक होने की आवश्यक शत यह भी है कि व्यक्ति एक सभ्य समाज के सदस्य के रूप में जीना सीखे। एक अच्छा नागरिक होना धार्मिक जीवन में प्रवेश करने की आवश्यक भूमिका है। अपने ग्रन्थ 'योगशास्त्र' में उन्होंने स्पष्ट रूप से यह उल्लेख किया है कि श्रावकधर्म का अनुसरण करने के पूर्व व्यक्ति एक अच्छे नागरिक का जीवन जीना सीखे । उन्होंने ऐसे 35-गुणों का निदेश दिया है, जिनका पालन एक अच्छे नागरिक के लिए आवश्यक रूप से वांछनीय है। वे लिखते हैं कि12. हेमचन्द्राच य (प. बेघरदास दोशी) पृ. 77 13. देखे-हेमचन्द्राचार्य (प. बेघरदास दोशी) पृ. 101-104 101104
SR No.520765
Book TitleSambodhi 1988 Vol 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamesh S Betai, Yajneshwar S Shastri
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1988
Total Pages222
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size5 MB
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