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________________ 19 दिया । यदि हेमचन्द्र में धार्मिक संकीर्णता होती तो वे कुमारपाल द्वारा सोमनाथ मन्दिर का जीर्णोदयार करा कर उसकी प्रतिष्ठा में स्वयं भाग क्यों लेते ? मात्र इतना ही नहीं स्वय महादेव स्तोत्र की रचना कर राजा के साथ स्वयं भी महादेव की स्तुति कैसे कर सकते थे ? उनके द्वारा रचित महादेवस्तोत्र इस बात का प्रमाण है कि वे धार्मिक उदारता के समर्थक थे । स्तोत्र में उन्होने शिव, महेश्वर, महादेव आदि शब्दों की सुन्दर और सम्प्रदाय निरपेक्ष व्याख्या करते हुए अन्त में यही कहा है कि संसाररूपी बीज के अंकुरों को उत्पन्न करनेवाले राग और द्वेष जिसके समाप्त हो, गये हों उसे मैं नमस्कार करता हुँ, चाहे ब्रह्मा हो, विष्णु हो, महादेव हो अथवा जिन हो । धार्मिक सहिष्णुता का अर्थ मिथ्या विश्वासों का पोषण नहीं यद्यपि हेमचन्द्र धार्मिक सहिष्णुता के समर्थक है फिर भी वे इस सन्दर्भ में सतर्क है कि धर्म के नाम पर मिथ्या धारणाओं और अन्धविश्वासों का पोषण न हो। इस सन्दर्भ मे वे स्पष्ट रूप से कहते है कि जिस धर्म में देव या उपास्य राग-द्वेष से युक्त हो, धर्मगुरु अब्रम्हचारी हो और धर्म में करुणा और दया के भावों का अभाव हो तो ऐसा धर्म वस्तुतः अधर्म ही है। उपास्य के सम्बन्ध में हेमचन्द्र को नामों का कोई आग्रह नहीं, चाहे वह ब्रह्मा हो. विष्णा हो, शिव हो या जिन, किन्तु उपास्य होने के लिए वे एक शर्त अवश्य रख देते हैं, वह यह कि उसे राग-द्वेष से मुक्त होना चाहिए | वे स्वयं कहते है कि . भवबीजांकुरजननरागद्याक्षयमुपागतास्य । ब्रह्मा वा विष्णुर्वा हरो वा जिनो वा नमस्तस्मै ।। इसी प्रकार गुरु के सन्दर्भ में भी उनका कहना है कि उसे ब्रह्मचारी या चरित्रवान होना चाहिए । वे लिखते है कि सर्वाभिलाषिण, सर्वभो जिनः सपरिग्रहः । अहाब्रचारिणो मिथ्योपदेशाः गुरवो न तु ॥" ' अर्थात् तो आकांक्षा से युक्त हो, भोज्याभोज्य के विवेक से रहित हो, परिग्रह सहित और अब्रह्मचारी तथा मिथ्या उपदेश देनेवाला हो वह गुरु नहीं हो सकता है। वे स्पष्ट रूप से कहते है कि जो हिंसा और परिग्रह में आकण्ठ डूबा हो, वह दूसरों को कैसे तार सकता है। जो स्वय' दीन हो वह दूसरों को घनाढय कैसे बना सकता है । अर्थात् चरित्रवान, निष्परिग्रही और ब्रह्मचारी व्यक्ति ही गुरु योग्य हो सकता है । धर्म के स्वरूप के सम्बन्ध में भी हेमचन्द्र का दृष्टिकोण स्पष्ट है । वे स्पष्ट रूप से यह मानते हैं कि जिस साधनामाग में दया एवं करुणा का अभाव हो, जो विषयाकांक्षाओं की पूर्ति को ही जीवन का लक्ष्य मानता हो, जिसमें समय को अभाव हो, वह धर्म नहीं हो सकता। हिसादि से कलुषित धम धर्म न होकर संसार-परिभ्रमण का कारण ही होता है। - इस प्रकार हेमचन्द्र धार्मिक सहिष्णुता को स्वीकार करते हुए भी इतना अवश्य मानते हैं कि धर्म के नाम पर अधर्म का पोषण नहीं होना चाहिए । उनकी दृष्टि में धम का अर्थ 3. देखें-महादेवस्तोत्र (आत्मानन्द सभा भावनगर) 1-16,44 4. महादेवस्तोत्र 44, 5. योगशास्त्र 2/9; 6. वही 2/10; 7. वही 2/13
SR No.520765
Book TitleSambodhi 1988 Vol 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamesh S Betai, Yajneshwar S Shastri
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1988
Total Pages222
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size5 MB
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