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श्रीजयसुन्दरसूरि विरचित
वकचंतुकनान पंथवो लचनीयानि समानकित्तिफू । फकवं कवफायफचने पकवम्हानतिले खलक्खनं ।। १४ चूलिका पैशाचिकम। सावपहायनिहाणु त सासणरह आकहिअ । नाणघणेहि समाणु के के न पहुत्ता सिवनयरे ॥ १५ तउ पयपंकचि नाह भमरुप्पणु नर जे धरहि । होइ हरिअजगवाहु तेहँ जल सोरहि सुरहित] ॥ १६ सामलबन्न उ मेघ जिह तउ रेहद पहु देहो । पुन्नधानकारणु जगहँ अमिअ दाणु गुरु पहो ॥ १७ धन्ना ते नयगुल्लडा जीहा ते हैं सुकयस्थ । जे तर प्रस्ताहि रूप तिघ बुवाहिजे तउ मुणसत्थ ॥१८ अपभ्रश भाषा ॥ नदमहोदयफलदकंद मंदरधीरिम धर । शमपेशलकलकुशलको ............॥